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बीजेपी और इसका राजनैतिक लाभ कितना सार्थक है ?

दशकों से सुनते आ रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी राजनैतिक लाभ लेने के लिए अयोध्या मथुरा और काशी की बात करती है? यह भी कि राजनीतिक फायदा उठाने के लिए आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली, कारसेवकों ने मस्जिद तोडी और कोर्ट के आदेश पर मोदी ने मंदिर बनवा दिया? राजनैतिक लाभ यानी वोटों का लाभ, वोटों का लाभ माने दिल्ली की सत्ता? राजनैतिक लाभ माने 2 सीट से 303 सीट?  राजनैतिक लाभ यानी कईं राज्यों में सरकार, माने 400 सीटों का स्वप्न!!!! अयोध्या के बाद काशी और मथुरा के सहारे 2050 तक सत्ता में बने रहने का लक्ष्य!!!

सनातन और हिन्दुत्व के बदले एक हजार साल पहले खोए स्वाभिमान की वापसी!! धर्म के रास्ते राजनैतिक लाभ, इस लाभ के जरिए रामराज्य लाने का संकल्प, रामराज्य के सहारे विश्वगुरु पद पर भारतमाता की पुनर्स्थापना का भीष्म निर्णय!! अखंड आर्यावर्त भारतवर्ष का दैदीप्यमान नक्षत्र बनकर चमकने का लक्ष्य? 

कांग्रेस और शेष विपक्ष का यही आरोप है कि भाजपा सांप्रदायिक पार्टी है। आज से नहीं, तभी से जब 1952 में कांग्रेस सरकार में मंत्री पद छोड़कर डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ का गठन किया था। आश्चर्य की बात है कि उसके साथ ही देश में जितनी भी पार्टियों का जन्म हुआ, कांग्रेस के विरोध में ही हुआ। कांग्रेस ने जन्मते ही जनसंघ को आरएसएस से जोड़ा, किंतु वामपंथियों को छोड़कर किसी भी विपक्षी दल ने जनसंघ को सांप्रदायिक नहीं माना।

बल्कि 1977 और 1989 में तमाम विपक्ष ने जनसंघ मतलब बीजेपी को साथ लेकर कांग्रेस को उखाड़ फेंका। विडंबना देखिए कि आज वही तमाम विपक्ष भाजपा का विरोधी है, राम मंदिर लोकार्पण और प्राण प्रतिष्ठा का विरोधी है और का कांग्रेस के साथ गलबाइयां डाले इंडिया गठबंधन बनाए बैठा है। आरोप है कि राजनैतिक लाभ लेने के लिए बीजेपी राम मंदिर में रामलला को स्थापित कर रही है?

आप जब मानते हैं कि राम कृष्ण की बात करने से राजनीतिक लाभ मिलता है, तो आप क्यों नहीं उठाते यह लाभ? किसने रोका है? अयोध्या मथुरा काशी के नाम से क्या चिढ़ है आपको? हिन्दू और हिन्दुत्व से क्या चिढ़ है? राष्ट्रवाद और रामराज्य के स्वप्न से क्या चिढ़ है? समृद्ध राष्ट्र के भविष्य से क्या चिढ़ है? जहां तक भारत की धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक समानता की बात है, उसका सभी सम्मान करते हैं।

देश में किसी ने कभी नहीं कहा कि मस्जिद या चर्च ना जाओ? आज तक किसी ने नहीं कहा कि राम को मानो, अल्लाह या ईसा को मत मानों? राम कृष्ण को मानने वाले सभी धर्मों का सम्मान करते हैं, करते रहेंगे। शर्म उन राजनीतिज्ञों को आनी चाहिए जो राम मंदिर के लोकार्पण निमंत्रण का घोर अपमान कर रहे हैं परंतु अब मंदिरों में हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं, 22 को अन्य मंदिरों में जाने की तैयारियां कर रहे है। चलिए अच्छा कहीं भी जाइए, पर राम को मत बिसराइए।