Default Image

Months format

View all

Load More

Related Posts Widget

Article Navigation

Contact Us Form

404

Sorry, the page you were looking for in this blog does not exist. Back Home

Ads Area

दिग्विजय सिंह को क्यूं है हिंदुओं से नफरत ? एक परिचय।

मनुष्य को जैसे संस्कार अपने पुरखों से मिलते हैं, उसके अनुरूप ही उसका स्वभाव, चरित्र और विचार बन जाते हैं। यह एक निर्विवाद सत्य है और दिग्विजय के ऊपर पूरी तरह से लागू होती है। दिग्विजय सिंह खुद को पृथ्वी राज चौहान का वंशज बताते है। लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है। दिग्विजय क्षत्रिओं की एक उपजाति "खीची" से सम्बंधित है। इसका विवरण "खीची इतिहास संग्रह" में मिलता है। इसके लेखक ए. एच. निज़ामी और जी. एस. खीची है। पुस्तक का संपादन आर. पी. पुरोहित ने किया है। किताब "खिची शोध संस्थान जोधपुर" से प्रकाशित हुई थी। एक और पुस्तक "सर्वे ऑफ खीची हिस्ट्री" में खीचियों के बारे में जानकारी मिलती है। खीची धन लेकर किसी राजा के लिए युद्ध करते थे। आज दिग्विजय खुद को मध्य प्रदेश में गुना जिला के एक छोटी सी रियासत "राघोगढ़" का राजा कहता है और इसके समर्थक इसे दिग्गी राजा कह कर पुकारते है।

दिग्विजय का पूर्वज कौन था:
पुस्तक के अनुसार दिग्विजय के हाथों जो रियासत मिली एक "गरीब दास" नाम के सैनिक को अकबर ने दी थी। जब राजपुताना और मालवा के सभी क्षत्रिय राणा प्रताप के साथ हो रहे थे, गरीब दास अकबर के पास चला गया। अकबर ने उसकी सेवा से प्रसन्न होकर मालवा के सूबेदार को हुक्म भेजा की गरीब दास को एक परगना यानि पांच गाँव दे दिए जाएँ। गरीब दास की मौत के बाद उसके पुत्र "बलवंत सिंह" (1770-1797) ने इसवी 1777 में बसंत पंचमी के दिन एक गढ़ी की नींव रखी और उसका नाम अपने कुल देवता "राघोजी "के नाम पर "राघोगढ़ "रख दिया था।

कर्नल टाड के इतिहास के अनुसार बलवंत सिंह ने 1797 तक राज किया और अंगरेजों से दोस्ती बढ़ाई। जब सन 1778 में प्रथम मराठा युद्ध हुआ तो बलवंत सिंह ने अंगरेजी फ़ौज की मदद की थी। इसका उल्लेख जनरल गडरेड ने "Section from State Papers, Maratha Volume, Page 204" में किया है। बलवंत सिंह की इस सेवा के बदले कम्पनी सरकार ने कैप्टेन फील्डिंग की तरफ से बलदेव सिंह को पत्र भेजा, जिसमे लिखा था कंपनी बहादुर की तरफ से यह परगना, जो बालामेट में है, उसका किला राघोगढ़ तुम्हें प्रदान किया जाता है और उसके साथ के गावों को अपना राज्य समझो। यदि सिंधिया सरकार किसी प्रकार का दखल करे तो इसकी सूचना मुझे दो।

बाद में जब 1818 में बलवंत सिंह का नाती अजीत सिंह (1818-1857) गद्दी पर बैठा तो अंगरेजों के प्रति विद्रोह होने लगे था, अजीत सिंह ने ग्वालियर के रेजिडेंट को पत्र भेजा कि, आजकल महाराज सिंधिया बगावत की तैयारी कर रहे हैं। उनके साथ झाँसी और दूसरी रियासत के राजा भी बगावत का झंडा खड़ा कर रहे हैं। इसलिए इन बागियों को सजा देने के लिए जल्दी से अंगरेजी फ़ौज भेजिए, उस पत्र का जवाब ग्वालियर के रेजिडेंट ए. सेपोयरिस ने इस तरह दिया "आप कंपनी की फ़ौज की मदद करो और बागियों साथ नहीं दो। आप हमारे दोस्त हो, अगर सिंधिया फ़ौज भेजे तो उस से युद्ध करो। कंपनी की फ़ौज निकल चुकी है।"

लेकिन सन 1856 में एक दुर्घटना में अजीत सिंह की मौत हो गयी। उसके बाद 1857 में उसका लड़का "जय मंगल सिंह" (1857-1900) गद्दी पर बैठा। इसके बाद "विक्रमजीत सिंह" राजा बना (1900 -1902)। लेकिन अंग्रेज किसी कारण से उस से नाराज हो गए और उसे गद्दी से उतार सिरोंज परिवार के एक युवक "मदरूप सिंह" को राजा बना दिया जिसका नाम "बहादुर सिंह" रख दिया गया (1902-1945)। अंगरेजों की इस मेहरबानी के लिए बहादुर सिंह ने अंगरेजी सरकार का धन्यवाद दिया और कहा "मैं वाइसराय का आभारी हूँ। मैं वादा करता हूँ कि सरकार का वफादार रहूँगा। मेरी यही इच्छा है कि अंगरेजी सरकार के लिए लड़ते हुए ही मेरी जान निकल जाये।"

इसी अंगरेज भक्त  का लड़का "बलभद्र सिंह" हुआ जो दिग्विजय सिंह का बाप है। बलभद्र का जन्म 1914 में हुआ था और इसके बेटे दिग्विजय का जन्म 28 फरवरी 1947 को इन्दौर में हुआ था।

बलभद्र सिंह ने मध्य भारत (पूर्व मध्य प्रदेश) की विधान सभा का चुनाव हिन्दू महासभा की सीट से लड़ा था और कांग्रेस के उम्मीदवार जादव को हराया था। सन 1969 में दिग्विजय ने भी नगर पालिका चुनाव कांग्रेस के विरुद्ध लड़ा था और जीत कर अध्यक्ष बन गया था। लेकिन इमरजेंसी के दौरान गिरफ्तारी से बचने लिए जब दिग्विजय सिंह "अर्जुन सिंह" के पास गया तो उसने कांग्रस में आने की सलाह दी। और कहा यदि जागीर बचाना है तो कांग्रेस में आ जाओ।

इस तरह दिग्विजय का पूरा वंश अवसरवाद, खुशामद खोरी और अंगरेजों सेवा करने लगा था। इसी कारण से जब दिग्विजय उज्जैन गया था तो वहां के भाजयुमो के अध्यक्ष "धनञ्जय शर्मा" ने सबके सामने गद्दार करार दिया था। और सबूत के लिए एक सी डी भी पत्रकारों को बांटी थी। (पत्रिका शुक्रवार 22 जुलाई 2011 भोपाल)

२.दिग्विजय ने कांग्रेसी नेत्री की हत्या करवायी!
अभी तक अधिकांश लोग इस बात का रहस्य नहीं समझ पा रहे थे कि दिग्विजय RSS और हिदुओं से क्यों चिढ़ता है। अभी अभी इसका कारण पता चला है। यद्यपि यह घटना पुरानी है। इसके अनुसार 14 फरवरी 1997 को रात के करीब 11 बजे दिग्विजय व उसके भाई लक्ष्मण सिंह और कुछ दुसरे लोगों ने "सरला मिश्रा" नाम की एक कांग्रेसी नेत्री की कोई ज्वलन शील पदार्थ डाल कर हत्या कर दी थी। और महिला को उसी हालत में जलता छोड़कर भाग गए थे। इतने समय के बाद यह मामला समाज सेवी और बीजेपी के पूर्व पार्षद महेश गर्ग ने फिर अदालत में पहुंचा दिया था और सीजेएम् श्री आर जी सिंह के समक्ष, दिग्विजय सिंह, उसके भाई लक्ष्मण सिंह, तत्कालीन टीआई एस एम् जैदी, नायब तहसीलदार आर के तोमर, तहसीलदार डी के सत्पथी, डॉ योगीराज शर्मा, एफ़एसएल के यूनिट प्रभारी हर्ष शर्मा और नौकर सुभाष के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 201, 212, 218, 120बी और 461 अधीन मामला दर्ज करने के आदेश देने के लिए आवेदन कर दिया था। फरियादी महेश गर्ग ने धारा 156(3) के तहत यह भी निवेदन भी किया था कि उक्त सभी आरोपियों के विरुद्ध जल्दी कार्यवाही की जाये। इसपर सीजेएम् महोदय ने सुनवाई की तारीख 28 जुलाई तय कर दी थी। यही कारण है कि दिग्विजय सभी हिन्दुओं का गालियाँ देता है। (दैनिक जागरण 23 जुलाई 2011 भोपाल)

हम सब जानते है कि आपसी विवाह सम्बन्ध करते समय परिवार का खानदान देखा जाता है। नियोजक किसी को नौकरी देते समय आवेदक की पारिवारिक पृष्ठभूमि देखते है। यहां तक जानवरों की भी नस्ल देखी जाती है। लेकिन हमारे यहां भोलापन इतना है की दिग्विजय सिंह जैसे लोग अपनी राजनीतिक चिकनी चुपड़ी बातों से हिंदुओं के विरुद्ध नफरत की राजनीति कर रहे है।