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श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा या वीवीआईपी कार्यक्रम ? तय आप करिए :

सुरक्षा का सवाल है यह ठीक है! मान लेते हैं कि आयोजन बेहद बड़ा है तो सुरक्षा सर्वोच्च है! राम मंदिर के लिए सदा सुरक्षा अहम रहेगी! सवाल व्यवस्था का है तो अच्छा हो यदि 22 जनवरी को सामान्यजन अयोध्या न जाएं! पर जिन्होंने 22 जनवरी के लिए पांच पांच गुना किराया देकर अयोध्या में होटल बुक कराए उन रामभक्तों का क्या दोष है? उनका क्या दोष जिन्होंने होटलों से अधिक दाम पर धर्मशालाएं बुक कराई, परिवारों के साथ अयोध्या जाने का कार्यक्रम बनाया? अयोध्या जब पहले ही रामभक्तों से खचाखच फुल हो चली थी, तब वीआईपी, वीवीआईपी, विदेशियों और नेताओं को इतनी भारी संख्या में नौतने की क्या जरूरत थी?

अयोध्या पर रामभक्तो का पहला हक :
अयोध्या पर उन रामभक्तों का पहला हक़ है जो 500 बरस से मंदिर बनने के इंतजार में बैठे हैं! उन ग्यारह गांव वालों का अधिकार, जिन्होंने पांच शताब्दियों से न जूते पहने न पगड़ी बांधी! अयोध्या से सटे उन गांव वालों का हक़ है जिन्होंने 22 दिसंबर 1949 को मस्जिद में रामलला के अचानक प्रगट होने के बाद मंदिर बन जाने तक एक समय भोजन का संकल्प लिया! अयोध्या उन करोड़ों देशभक्तों की पहले है, जिन्होंने रथ यात्राओं में भाग लिया, जिन्होंने बड़ी बड़ी जनसभाओं में आधी रात तक बैठकर ऋतंभरा को सुना, आडवाणी को सुना, उमा भारती, अशोक सिंहल और प्रवीण तोगड़िया को सुना!

अयोध्या पर पहला हक कारसेवकों का :
बात उन करोड़ों कारसेवकों की है अयोध्या जिन्होंने राम लिए अयोध्या और गोधरा में बलिदान दिया! केवल बड़े बड़े नामावर संतो महंतों की ही नहीं, उन सामान्य साधुओं, दंडी स्वामियों, नागाओं, रामानंदियों, रामकथा गायकों की है जिन्होंने शहर शहर गांव गांव घूमकर राम नाम की अलख जगाई! अयोध्या उन फक्कड़ बाबाओं की है जिन्होंने धर्मसंसदों में जयकारे लगाए, उन आम लोगों की है अयोध्या जिन्होंने सवा रुपया और एक ईंट राम मंदिर के लिए दी, जिन आलावरों ने गली गली राम धुन गाई!

क्या प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम वीवीआईपी कार्यक्रम :
देश के लाखों लोगों ने मंदिर उदघाटन के साक्षी होने के लिए महीनों पहले मंहगे होटल धर्मशालाएं न केवल अयोध्या अपितु आसपास के जनपदों में बड़े अरमानों से बुक कराए! अब बड़े बड़े धन कुबेरों, नेताओं और नौकरशाहों के लिए सामान्यजनों की बुकिंग रद्द करना कहां का न्याय है? इसे तो स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम भी पसंद नहीं करेंगे? राम तो केवट, भील, निषाद के हैं, शबरी के हैं, जामवंत के, जटायु और वानरों के हैं!

वीवीआईपी कल्चर से मुक्ति कब :
कुछ भी कीजिए, रामभक्तों पर बंधन मत लगाइए! बड़े संघर्षों के बाद 22 जनवरी का दिन आया है! माना कि सुरक्षा का बहुत बड़ा सवाल है, पर यह तो पहले सोचना था! या तो पहले से दो दिनों की बुकिंग पर प्रतिबंध लगाते, या फिर वीआईपी कल्चर से मुक्ति पाते! खैर अब यदि सब हो ही गया है और सुरक्षा को खतरा है तो जिनकी बुकिंग रद्द हुई उन सभी को फिर बुलाइए, उनकी बुकिंग आगे शिफ्ट कराइए! हर्ष के इस महासागर में राम भक्तों का दिल इस तरह तोड़ना अच्छी बात नहीं है!