इस देश में महान बनाने की एक फैक्ट्री है। दरअसल, ये फैक्ट्री नहीं एक गैंग है जो महानता के सर्टिफिकेट देती है। इसी फैक्ट्री में ये तय होता है कि कौन महान है और कौन नीच? एक भी चुनाव न जीतने वाले को महान नेता... हजारों लोगों को मौत के घाट उतारने वाले को उदारवादी और इमर्जेंसी लगाने वाले तानाशाह को डेमोक्रेटिक घोषित कर सकता है। और हां 54 साल के अधेड़ को युवा नेता बता कर भारत का भविष्य साबित कर सकता है। आजकल इसी फैक्ट्री में मनमोहन सिंह को महान बनाने के लिए कड़ी मेहनत की जा रही है। मनमोहन सिंह कैसे प्रधानमंत्री थे ये बाद में बताएँगे लेकिन उससे पहले इनकी शख्सियत को समझना जरूरी है। तो आइए जानते है की प्रजातंत्र के अंधकार युग के प्रतिबिंब और ईमानदारी के मुखौटा मनमोहन सिंह के बारे में।
चंद्रशेखर सरकार में मनमोहन सिंह :
चंद्रेशखऱ सरकार के मनमोहन सिंह आर्थिक सलाहकार थे। राजनीतिक परिस्थिति ऐसी बनी कि सरकार गिर गई। चंद्रशेखर जी ने प्रधानमंत्री पद से 6 मार्च, 1991 को इस्तीफा दिया लेकिन वो अगले चुनाव तक के लिए केयरटेकर प्रधानमंत्री बने रहे। सरकार गिरने के बाद चंद्रशेखर जी अपने सहयोगियों के साथ बैठकर आगे की रणनीति बना रहे थे। मनमोहन सिंह भी चंद्रशेखर जी से मिलने पहुंचे। बहुत देर तक मुंह लटकाए वो बैठे रहे फिर उदास मन से मनमोहन सिंह ने चंद्रशेखर जी से पूछा, अब मेरा क्या होगा। अब मैं क्या करूंगा। वहां मौजूद लोग चक्कर खा गए कि मनमोहन जी क्या कह रहे हैं। एक तरफ तो सरकार गिर गई है, सब दुखी हैं और इन्हें अपनी चिंता लगी हुई है।
लेकिन मनमोहन सिंह ने आगे जो कहा, उसे सुनकर सारे लोग हैरान रह गए। उन्होंने चंद्रशेखर जी से कहा कि यूजीसी के चेयरमैन की सीट खाली है, मुझे वहां भेज दीजिए। चंद्रशेखर जी ने मनमोहन सिंह से कहा कि अब वो प्रधानमंत्री नहीं है ऐसा करना ठीक नहीं होगा। लेकिन, मनमोहन सिंह ने इतनी मिन्नतें की जिसके आगे चंद्रशेखर जी का दिल पिघल गया। चंद्रशेखर जी ने शायद इस्तीफा देने के बाद अकेला यही फैसला लिया। मनमोहन सिंह 15 मार्च, 1991 को यूजीसी के चेयरमैन बन गए। मनमोहन सिंह कोई नेता न थे और न हैं। वो जीवन भर एक पदलोलुप यानि कैरियरिस्ट ही रहे। हर दायित्व उनके लिए एक नौकरी ही थी। हकीकत यही है कि मनमोहन सिंह दस साल तक प्रधानमंत्री नहीं रहे बल्कि उन्होने प्रधानमंत्री पद की नौकरी की है।
एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर मनमोहन सिंह :
‘एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ मनमोहन सिंह कभी जन नेता न बन सके। 2004 से पहले वे वित्त मंत्री भी रहे, लेकिन जनता के साथ कोई रिश्ता नहीं बना सके। देश के अधिकांश लोगों को ये भी पता नहीं है कि राज्यसभा में वो किस राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं। न भाषण दे सकते हैं और न ही युवाओं को प्रेरित करने की क्षमता है। दो टर्म पूरा करने वाले ये अकेले प्रधानमंत्री हैं जिन्हें उनकी पार्टी के कार्यकर्ता और सांसद, यहां तक कि कैबिनेट के सहयोगी भी अपना नेता नहीं माना। भारत के प्रजातंत्र का ये दुर्भाग्य है कि इसे एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला जो अपनी कैबिनट खुद तय नहीं सका। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री सिर्फ इसलिए बने, क्योंकि उन्हें सोनिया गांधी ने चुना था।
महानता की डिग्री देने वाला गैंग, मनमोहन सिंह को विश्व्स्तरीय अर्थशास्त्री और ईमानदार साबित करने में जुटा है। हकीकत ये है कि जब मनमोहन सिंह भारत सरकार के आर्थिक सलाहकार थे तब इन्होंने देश का सोना गिरवी रखवाया था। इस महान अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के शासनकाल में कृषि की हालत बदतर हुई। उद्योग का विकास थम गया। विदेशी निवेश आने बंद हो गए। निर्यात को झटका लगा। बेरोजगारी बढ़ी। मंहगाई बढ़ी। बाजार मंदा हुआ। सोना मंहगा हुआ। इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास का काम बिल्कुल ठप्प रहा। सड़क नहीं, पानी नहीं और बिजली की कमी लगातार बनी रही।
यूपीए के दौरान भारत में हर आधे घंटे में एक किसान आत्महत्या करने का रिकार्ड बना। किसानों की जमीन जितनी यूपीए के दस सालों में छीनी गई, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया। किसानों की जमीन छीन कर निजी कंपनियों को देने वाली सरकार मानो प्रॉपर्टी डीलर बन गई। किसान कर्जमाफी के नाम पर भी घोटाला ही हुआ। यूपीए के दौरान सही मायने में विकास पागल ही नहीं, बेहोश हो गया और अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री टकटकी लगाए 10 जनपथ के आदेशों का इंतजार करते रहे। हकीकत यही है कि मनमोहन सिंह आजाद भारत के सबसे कमजोर और फैसले न लेने वाला प्रधानमंत्री हैं।
सांप्रदायिकता को रोकने के नाम पर देवेगौड़ा और गुजराल जैसे लोग भी प्रधानमंत्री बने जिनका आज कोई नाम लेने वाला नहीं है लेकिन मनमोहन सिंह के कार्यकाल में जिस तरह संवैधानिक संस्थाओं की साख को नष्ट किया गया वो वाकई शर्मनाक है। पहली बार एक कैबिनेट मिनिस्टर जेल गया। पहली बार सीएजी पर सरकार के मंत्रियों ने सवाल उठाए। पहली बार सुप्रीम कोर्ट को ये कहना पड़ा कि सीबीआई के पिंजडबंद तोता है। पहली बार एक दागी को सीवीसी बनाया गया जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बाद में हटाया गया। पहली बार यूपीए सरकार
के दौरान संसदीय समितियों का राजनीतिकरण देखा गया। इतना ही नहीं, संसद का सबसे ज्यादा समय बर्बाद करने का रिकॉर्ड भी यूपीए-2 ने अपने नाम किया है।
देश में पहली बार थल सेना अध्यक्ष और सरकार आमने सामने हो गई। कई बार मनमोहन सरकार के नुमाइंदे लोकसभा और राज्यसभा में झूठ बोलते पकड़े गए। मनमोहन सिंह को महान साबित करने वालों को ये भी बताना चाहिए कि पहली बार एक मंत्री सीबीआई की जांच रिपोर्ट को बदलवाते पकड़ा गया। वो भी ऐसे मामले (कोयला घोटाला) में जिसमें स्वयं मनमोहन सिंह पर शक की सुई थी। मतलब यह कि मनमोहन सिंह को इतिहास में एक ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाएगा, जिनके शासनकाल में देश की सभी प्रजातांत्रिक सस्थाओं का क्षरण हुआ।
एक जमाना था जब बोफोर्स घोटाले के नाम पर देश की राजनीति बदल गई। वह घोटाला महज 64 करो़ड का था, लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार की कृपा से यूपीए के दौरान 64 करोड़ रुपये के घोटाले को घोटाला भी मानना बंद हो गया, क्योंकि मनमोहन सिंह सरकार घोटाले के सारे रिकॉर्ड को तोड़ दिए। मनमोहन सिंह की नाक के नीचे जितने घोटाले हुए अगर उसे लिखना शुरु किया जाए तो यहां जगह ही नहीं बचेगी। यूपीए के दौरान भ्रष्टाचार का आलम तो यह था कि कई घोटालों में प्रधानमंत्री कार्यालय पर शक की सुई जा टिकी। हिंदुस्तान का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला कोयला घोटाला तब हुआ जब मनमोहन सिंह कोयला मंत्री थे। मनमोहन सिंह को महान बताने वाले लोगों के ये बताना चाहिए कि कोयला खदानों के आवंटन की हर फाइल पर मनमोहन सिंह के दस्तखत हैं। लेकिन मनमोहन सिंह की ईमानदारी देखिए कोर्ट में जाकर ये कह दिया कि सारी फाईलें गुम हो गई है। कोयला घोटाले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इतनी आपत्तिजनक टिप्पणियां की कि कोई भी आत्मसम्मान वाला और राजनीतिक मर्यादा को मानने वाला व्यक्ति इस्तीफा दे चुका होता। लेकिन, पदलोलुप मनमोहन सिंह ने तो चुप्पी ही साध ली।
मनमोहन सिंह एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जो खुद कभी एक चुनाव तक नहीं जीते सके। सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को चुनकर प्रजातंत्र का मजाक उड़ाया है। वैसे भी, मनमोहन सरकार के 10 साल के कार्यकाल का चैप्टर कालिख से लिखा जा चुका है। यह आज़ाद भारत की अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है। इतिहास में मनमोहन सिंह को प्रजातांत्रिक व्यवस्था को सबसे ज़्यादा कमजोर करने वाले अध्याय में शामिल किया जाएगा।
मनमोहन सिंह को महान साबित करने वाली फैक्ट्री को शायद ये इल्म नहीं है कि ये 1975 नहीं, 2017 है। ये सूचना क्रांति का दौर है। सोशल मीडिया और इंटरनेट के सामने झूठ की फैक्ट्री टिक नहीं सकती चाहे इसे चलाने वाले कितना भी बड़ा स्वघोषित बुद्धिजीवी क्यों न हो।