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महाभारत का जिक्र जब भी होता है तो कुछ ऐसे ऐसे रोचक तथ्य सामने आते है जिसपे विश्वाश कर पाना मुश्किल होता है, लेकिन ज्यों-ज्यों हम इसकी तह तक जाते है तो पता चलता है की ये सच था। आज हम बात करने जा रहे है की आखिर कैसे माता गांधारी तथा राजा धृतराष्ट्र के 101 संताने हो सकती है, जिन्हे महाभारत काल में कौरव कहा जाता था। आइये जानते है इसके पीछे का रहस्य,

माता गांधारी को शिव बरदान :
माता गांधारी गांधार नरेश की पुत्री थी तथा बाल्य काल से ही माता गांधारी एक शिव भक्त थी, तथा माता गांधारी ने अपना मुख्य समय भगवान् शिव की भक्ति में बिताया जिससे भगवान् शिव माता गांधारी से प्रसन्न हुए और उनको 101 पुत्रो का वरदान दिया।

माता गांधारी का विवाह :
माता गांधारी की शादी विचित्रवीर्य के जेष्ठ पुत्र धृतराष्ट्र से हुई जो की नेत्रहीन थे, धृतराष्ट्र ने सोचा था की उनकी पत्नी नेत्रहीन न हो ताकि वो अपनी पत्नी की आँखों से साड़ी दुनिया देख सके तथा राज्य संभाल सके लेकिन ऐसा हुआ नहीं और माता गांधारी ने शादी के बाद पतिधर्म निभाते हुए अपनी आँखों पर भी पट्टी बांध लिया। इस बात से धृतराष्ट्र काफी नाराज हुए क्युकी उनकी अपंगता के कारण उनका राजतिलक नहीं हुआ बल्कि पाण्डु का हुआ। 

माता गांधारी का मास के टुकड़े को जन्म देना :
धृतराष्ट्र माता गांधारी से इस कदर नाराज थे की वो माता गांधारी को अपने शमीप तक नहीं आने देते थे लेकिन शकुनि जो की अत गांधारी का भाई था, उसने धृतराष्ट्र को भगवान् शिव के वरदान के बारे में बताया की गांधारी को 101 संतान का वरदान है जो की आपके स्वप्नों को पूरा करेंगे। शकुनि की ये बात सुनकर महत्वकांछी धृतराष्ट्र को अपने स्वप्नों को पूरा करने का एक रास्ता नजर आया, अतः धृतराष्ट्र माता गांधारी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार लिया। अब माता गांधारी को गर्भ धारण किये हुए दश महीने से ऊपर का समय बीत चूका है लेकिन उन्हें अबतक प्रसव की पीरा नहीं हुई है। माता गांधारी को गर्व धारण करने के 15 महीने बाद प्रसव के दौरान एक बरा मास टुकड़ा हुआ, जिसको देख धृतराष्ट्र काफी नाराज हुए और माता गांधारी को बहुत कोषा। धृतराष्ट्र ने माता गांधारी को पीड़ा देने के लिए उनकी सबसे प्रिये दाशी के साथ सम्बन्ध बना लिए। 

महर्षि वेदव्यास द्वारा मास के टुकड़े की सच्चाई का पता लगाना :
उसी वक़्त महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर पहुंचे और मास के टुकड़े की जाँच की और कहा की भगवान् शिव का वरदान अटल है वो कभी गलत नहीं हो सकता  अतः ये जो मास का टुकड़ा माता गांधारी के गर्व से हुआ है वो आपके 101 संतानो का बीज है। माता गांधारी ने भगवान् शिव से एक पुत्री की भी मांग की थी सो आपके 100 पुत्र और 1 पुत्री के बीज है इस मांस के टुकड़े में। महर्षि वेद व्यास ने 101 घरो का इंतजाम किया और उसके अंदर गर्व जैसा वातावरण बना का उन बीजो को घरे में डाल दिया, इस प्रकार से जिस पुत्र ने पहले जान लिया उसका ना दुर्योधन रखा गया उसके बाद क्रमसः 99 पुत्रो का जन्म हुआ और 1 पुत्री जिसका नाम दुशाला रखा गया। चुकी धृतराष्ट्र ने दाशी से भी सम्बन्ध बना लिए थे सो धृतराष्ट्र को दाशी से भी एक पुत्र की प्राप्ति होती है। 

इस प्रकार से कौरवो की संख्या 102 हुई जिसमे उनकी एक बहन भी थी। 

इस पृष्ठ मेंमुख्या पात्र :
माता गांधारी : कौरवो की माँ, धृतराष्ट्र की धर्म पत्नी, शकुनि की बहन, गांधार नरेश की पुत्री 
धृतराष्ट्र : कौरवो के पिता, माता गांधारी के पति, विचत्रवीर्य के पुत्र 
शकुनि : माता गांधारी के भाई, कौरवो के मामा 
पाण्डु : विचत्रवीर्य के पुत्र, पांडवो के पिता 
वेदव्यास : महाभारत के रचयिता, सत्यवती तथा ऋषि परासर के पुत्र 

सम्पादक : विशाल कुमार सिंह 


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