भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसमें राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव न केवल संवैधानिक परंपरा का प्रतीक होते हैं बल्कि आने वाले वर्षों की राजनीतिक दिशा भी तय करते हैं। हाल ही में उपराष्ट्रपति चुनाव में हुई क्रॉस-वोटिंग ने एक बड़ा संदेश दिया है। विपक्षी दलों के कई सांसदों ने एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया, जिससे स्पष्ट हो गया कि संसद के भीतर विपक्ष की एकजुटता उतनी मजबूत नहीं है जितनी दिखाई जाती है। इस क्रॉस-वोटिंग का असर केवल उपराष्ट्रपति चुनाव तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका सीधा असर 2027 के राष्ट्रपति चुनाव पर भी पड़ेगा। खासतौर से तब, जब उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का गणित एनडीए के पक्ष में हो। क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव में सांसद और विधायकों दोनों के मतों का मूल्य जुड़ता है और यूपी जैसे राज्य की निर्णायक भूमिका होती है।
उपराष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस-वोटिंग का महत्व
उपराष्ट्रपति का चुनाव केवल सांसदों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक सांसद का मत मूल्य समान होता है और यही कारण है कि विपक्ष की एकजुटता इस चुनाव में महत्वपूर्ण होती है। लेकिन हाल ही में हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में देखा गया कि कई विपक्षी दलों के सांसदों ने एनडीए उम्मीदवार को वोट दिया। यह केवल संख्या का खेल नहीं था बल्कि इससे यह संदेश गया कि विपक्ष के भीतर गहरी दरारें हैं। लोकतंत्र में क्रॉस-वोटिंग यह बताती है कि नेता चाहे पार्टी लाइन तय कर लें, लेकिन जनप्रतिनिधि अपनी अंतरात्मा या भविष्य की राजनीतिक दिशा देखकर भी निर्णय लेते हैं। इस क्रॉस-वोटिंग ने एनडीए को मजबूती दी और यह संकेत भी दिया कि संसद के भीतर उनकी पकड़ मजबूत हो रही है। यही पकड़ आगे चलकर राष्ट्रपति चुनाव में निर्णायक साबित हो सकती है।
राष्ट्रपति चुनाव का गणित और वोट वैल्यू
भारत में राष्ट्रपति चुनाव का गणित बेहद जटिल होता है। इसमें सांसदों और विधायकों दोनों के मत शामिल होते हैं। प्रत्येक सांसद का मत मूल्य 700 अंक का होता है। वहीं विधायकों का मत मूल्य उनके राज्य की जनसंख्या और विधानसभा सदस्यों की संख्या पर आधारित होता है। इसका सीधा मतलब है कि बड़े राज्यों के विधायक राष्ट्रपति चुनाव में बड़ा फर्क डालते हैं। उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे अहम है क्योंकि यहां 403 विधायक हैं और इनके मत मूल्य का कुल जोड़ सबसे ज्यादा होता है। यदि एनडीए 2027 में यूपी जीत लेता है तो राष्ट्रपति चुनाव में उसकी जीत लगभग सुनिश्चित हो जाएगी। यही कारण है कि उपराष्ट्रपति चुनाव की क्रॉस-वोटिंग और यूपी का राजनीतिक गणित आपस में जुड़ते हैं।
उत्तर प्रदेश की निर्णायक भूमिका
उत्तर प्रदेश केवल जनसंख्या और विधानसभा सीटों की वजह से महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि राजनीतिक रूप से भी पूरे देश की दिशा तय करता है। 2027 के राष्ट्रपति चुनाव में यदि एनडीए यूपी पर कब्जा जमाता है, तो उसे विधायकों से मिलने वाले वोट मूल्य में भारी बढ़त मिलेगी। चूंकि हर सांसद का मत मूल्य 700 है, इसलिए संसद में पहले से मजबूत स्थिति के साथ यूपी जैसी बड़ी विधानसभा का समर्थन मिलने पर विपक्ष लगभग बेअसर हो जाएगा। यही कारण है कि विपक्ष के नेता लगातार यूपी पर ध्यान केंद्रित करते हैं। लेकिन एनडीए के पास यूपी में मजबूत संगठनात्मक संरचना और जनाधार है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यूपी की निर्णायक भूमिका 2027 में राष्ट्रपति चुनाव को एनडीए के लिए ‘केकवॉक’ यानी बेहद आसान बना देगी।
क्रॉस-वोटिंग का संदेश विपक्ष के लिए
उपराष्ट्रपति चुनाव में हुई क्रॉस-वोटिंग विपक्ष के लिए बड़ा झटका है। यह दर्शाता है कि विपक्षी दलों के बीच एकता केवल कागज पर है, जमीन पर नहीं। जब सांसद पार्टी के आदेश के खिलाफ जाकर वोट देते हैं तो यह संकेत होता है कि विपक्ष के भीतर विश्वास की कमी है। विपक्ष को यह समझना होगा कि यदि 2027 तक इसी तरह की स्थिति रही तो राष्ट्रपति चुनाव में उनके पास कोई संभावना नहीं बचेगी। यह चुनाव केवल सरकार बनाने का खेल नहीं है बल्कि यह पूरे देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर कब्जा जमाने का मौका है। यदि विपक्ष अपने सांसदों और विधायकों को एकजुट नहीं रख सका तो क्रॉस-वोटिंग बार-बार एनडीए को फायदा पहुंचाती रहेगी।
एनडीए की रणनीति और मजबूती
एनडीए ने पिछले कुछ वर्षों में यह साबित किया है कि वह न केवल अपने सहयोगियों को साथ रखने में सफल है बल्कि विपक्ष के अंदर भी सेंध लगाने में माहिर है। उपराष्ट्रपति चुनाव में मिली सफलता इसी रणनीति का नतीजा है। एनडीए की ताकत यह है कि वह अपने सांसदों और विधायकों को एकजुट रखता है और साथ ही विपक्ष के भीतर असंतोष को अपने पक्ष में मोड़ लेता है। यही कारण है कि 2027 के राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए की जीत की संभावना पहले से ही मजबूत दिख रही है। यूपी में जीत इस समीकरण को और पुख्ता कर देगी।
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की चुनौतियाँ
विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती है एकता। विभिन्न विचारधारा और स्वार्थ रखने वाले दल एक मंच पर टिक नहीं पाते। उपराष्ट्रपति चुनाव ने इस कमजोरी को उजागर कर दिया है। विपक्ष के पास संसदीय संख्या तो सीमित है ही, साथ ही यदि उनके विधायक और सांसद पार्टी लाइन से हटकर मतदान करते हैं तो उनकी स्थिति और कमजोर हो जाएगी। विपक्ष के नेताओं को यह समझना होगा कि केवल एनडीए विरोध की राजनीति उन्हें कहीं नहीं ले जाएगी। जब तक वे ठोस कार्यक्रम और मजबूत गठबंधन नहीं बनाते, तब तक राष्ट्रपति चुनाव में उनकी कोई संभावना नहीं है।
2027 का चुनाव और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का विमर्श
2027 का राष्ट्रपति चुनाव केवल राजनीतिक समीकरण का नहीं बल्कि विचारधारा और विकास मॉडल का भी चुनाव होगा। मोदी सरकार ‘आत्मनिर्भर भारत’ के नारे को लेकर आगे बढ़ रही है और राष्ट्रपति चुनाव में यदि एनडीए का उम्मीदवार जीतता है तो यह न केवल राजनीतिक बल्कि वैचारिक जीत भी होगी। इससे यह संदेश जाएगा कि जनता और प्रतिनिधि दोनों इस विचारधारा के साथ हैं। दूसरी ओर विपक्ष यदि असफल होता है तो यह साबित होगा कि उनके पास कोई ठोस एजेंडा नहीं है। इस तरह राष्ट्रपति चुनाव केवल सत्ता का खेल नहीं रहेगा बल्कि यह भविष्य की दिशा तय करेगा।
अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रपति चुनाव
भारत का राष्ट्रपति भले ही कार्यकारी शक्तियों से दूर हो लेकिन यह पद देश की वैचारिक और नैतिक दिशा का प्रतीक है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यह चुनाव संदेश देता है कि भारत किस प्रकार की राजनीति और नेतृत्व को प्राथमिकता देता है। उपराष्ट्रपति चुनाव की क्रॉस-वोटिंग ने पहले ही यह दिखा दिया है कि एनडीए की पकड़ मजबूत है। यदि 2027 में एनडीए जीतता है तो यह दुनिया को संदेश देगा कि भारत एक स्थिर और मजबूत लोकतंत्र है, जहां जनता और प्रतिनिधि दोनों मिलकर निर्णायक नेतृत्व का समर्थन करते हैं।
निष्कर्ष: एनडीए के लिए आसान राह?
उपराष्ट्रपति चुनाव की क्रॉस-वोटिंग ने जो संकेत दिया है, वह स्पष्ट है—एनडीए की राह 2027 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए आसान होती जा रही है। प्रत्येक सांसद का वोट मूल्य 700 है और यदि एनडीए यूपी में जीत दर्ज कर लेता है तो उसका पलड़ा इतना भारी हो जाएगा कि राष्ट्रपति चुनाव उसके लिए ‘केकवॉक’ बन जाएगा। विपक्ष यदि अपनी गलतियों से सबक नहीं लेता तो भविष्य में भी उसे हार का सामना करना पड़ेगा। अंततः यह चुनाव केवल एनडीए या विपक्ष की जीत-हार का नहीं बल्कि भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और दिशा का सवाल है।
शेयर जरूर करें