योग भारतीय संस्कृति की आत्मा है। यह केवल शारीरिक व्यायाम नहीं बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक और सामाजिक संतुलन का साधन है। सत्य सनातन धर्म में हजारों वर्षों से योग जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा रहा है। लेकिन दुख की बात यह है कि आज कुछ अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान, खासकर बीबीसी जैसे, योग को ‘इस्लामी योग’ कहकर उसके मूल स्वरूप को तोड़ने और विकृत करने की कोशिश कर रहे हैं। यह न केवल भारतीय संस्कृति का अपमान है बल्कि सनातन धर्म की जड़ों पर प्रहार भी है। अब सवाल उठता है कि आखिर योग को किसी धर्म विशेष से जोड़ने की कोशिश क्यों? 10 बिन्दुओ में इस विश्लेषण को जरूर पढ़े।
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1. योग की प्राचीन जड़ें और सनातन धर्म का योगदान
योग की उत्पत्ति भारत की पवित्र भूमि पर हुई। ऋग्वेद, उपनिषद और पतंजलि के योगसूत्रों में योग का गहरा उल्लेख मिलता है। यह सिर्फ व्यायाम का रूप नहीं बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग है। महर्षि पतंजलि ने योग को अष्टांग रूप में प्रस्तुत किया—यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। ये आठ चरण जीवन को अनुशासन और पूर्णता की ओर ले जाते हैं। सनातन धर्म में योग को केवल शरीर स्वस्थ रखने का साधन नहीं बल्कि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है। योग हजारों वर्षों से भारतीय संस्कृति की पहचान रहा है। इस पर किसी और धर्म की छाप लगाने का प्रयास सीधा सांस्कृतिक धोखा है।
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2. विदेशी आक्रांताओं के हमले और योग की खोई पहचान
भारत पर जब मुस्लिम आक्रांताओं ने आक्रमण किए, तब केवल मंदिर और मूर्तियां ही नहीं तोड़ी गईं बल्कि योग और आयुर्वेद जैसी ज्ञान परंपराओं को भी नष्ट करने की कोशिश की गई। आक्रांताओं ने योग साधकों को ‘काफ़िर’ कहकर सताया। धीरे-धीरे योग की सार्वजनिक परंपरा कमजोर होती चली गई। यही कारण है कि योग अपनी वास्तविक पहचान खो बैठा। औपनिवेशिक काल में भी अंग्रेजों ने योग को अंधविश्वास और जादूटोना बताकर उपेक्षित किया। लेकिन भारतीय ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना जारी रखी। इस्लाम और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में योग दबा रहा, लेकिन पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ। आज इसे नया जीवन देने की जिम्मेदारी भारतवासियों की है।
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3. मोदी सरकार और अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की मान्यता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देकर योग को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई। इसके परिणामस्वरूप 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित किया गया। यह भारत की संस्कृति और योग के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि थी। इस कदम ने योग को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाया और दुनिया भर में करोड़ों लोग योग को अपनाने लगे। मोदी सरकार के इस प्रयास ने योग को फिर से उसकी खोई हुई पहचान लौटाई। लेकिन इसी के साथ कुछ ताकतें सक्रिय हो गईं जो योग को किसी और धर्म के साथ जोड़कर उसकी जड़ों को तोड़ना चाहती हैं।
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4. बीबीसी की रिपोर्ट और ‘इस्लामी योग’ का विवाद
बीबीसी ने हाल ही में एक रिपोर्ट चलाई जिसमें शीर्षक दिया गया—“इस्लामी योग क्या है?”। यह सवाल ही अपने आप में हास्यास्पद और सांस्कृतिक रूप से आपत्तिजनक है। योग की उत्पत्ति भारत में हुई, इसका कोई भी संबंध इस्लाम या किसी अन्य धर्म से नहीं रहा। फिर ‘इस्लामी योग’ शब्द का प्रयोग क्यों किया गया? यह स्पष्ट है कि ऐसी रिपोर्टें जानबूझकर भारत की संस्कृति को तोड़ने और लोगों के बीच भ्रम पैदा करने के लिए चलाई जाती हैं। यह तुष्टीकरण की राजनीति का हिस्सा है जिसमें भारतीय पहचान को धुंधला करने की कोशिश की जाती है।
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5. मीडिया का तुष्टीकरण और हिंदू-विरोधी एजेंडा
बीबीसी और ऐसे अन्य अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान अक्सर ऐसे एजेंडे चलाते हैं जो हिंदू संस्कृति को कमज़ोर करें और इस्लाम या अन्य पंथों को महिमामंडित करें। यह कोई नई बात नहीं है। पहले भी ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसे शब्द गढ़े गए थे ताकि हिंदू समाज को ही अपराधी ठहराया जा सके। अब वही मानसिकता योग पर लागू की जा रही है। जब पूरी दुनिया योग को भारतीय संस्कृति की धरोहर मानती है, तब बीबीसी जैसे संस्थान इसे इस्लाम से जोड़कर नया नैरेटिव खड़ा करने में जुट जाते हैं। यह सीधे-सीधे हिंदू विरोधी एजेंडे का हिस्सा है।
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6. योग और इस्लाम: क्या कोई संबंध है?
सच यह है कि योग और इस्लाम का कोई ऐतिहासिक या दार्शनिक संबंध नहीं है। योग की जड़ें वैदिक परंपरा, वेदांत और उपनिषदों से जुड़ी हैं। वहीं इस्लाम का उद्भव 7वीं शताब्दी में अरब भूमि पर हुआ। योग का उद्देश्य आत्मा और ब्रह्म के मिलन की साधना है, जबकि इस्लाम का दर्शन पूरी तरह भिन्न है। इसलिए यह कहना कि ‘इस्लामी योग’ जैसी कोई चीज़ है, एक झूठी और भ्रामक अवधारणा है। यह केवल राजनीतिक और धार्मिक तुष्टीकरण की उपज है। बीबीसी का यह कदम भारतीय संस्कृति को कमजोर करने की साजिश है।
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7. पश्चिमी समाज में योग की बढ़ती लोकप्रियता
आज अमेरिका, यूरोप और एशिया के कई देशों में योग स्वास्थ्य और मानसिक शांति का सबसे प्रभावी साधन बन चुका है। करोड़ों लोग योग के जरिए तनाव, अवसाद और बीमारियों से छुटकारा पा रहे हैं। योग को अब विज्ञान भी मान्यता देने लगा है। ऐसे समय में जब पूरी दुनिया भारत की इस धरोहर को स्वीकार कर रही है, बीबीसी जैसे संस्थान इसे ‘इस्लामी योग’ कहकर विवाद पैदा कर रहे हैं। उनका उद्देश्य योग की जड़ों को धुंधला करना और भारत की इस उपलब्धि को दूसरे धर्मों के नाम पर बेचना है।
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8. सनातन धर्म पर लगातार हमले
यह पहली बार नहीं है जब सनातन धर्म को निशाना बनाया गया है। कभी मंदिरों को तोड़ा गया, कभी मूर्तियों का अपमान किया गया, और अब योग पर हमला किया जा रहा है। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें भारत की संस्कृति को तोड़ने और लोगों को अपने धर्म से दूर करने की कोशिश की जाती है। ‘इस्लामी योग’ जैसी अवधारणाएं उसी एजेंडे का हिस्सा हैं। यह हमें याद दिलाती हैं कि सनातन धर्म पर हमेशा हमले होते रहे हैं, लेकिन हर बार यह धर्म और मजबूत होकर उभरा है।
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9. भारतीयों की जिम्मेदारी और जागरूकता
अब समय है कि भारतीय समाज विशेषकर हिंदू जागरूक हो। हमें समझना होगा कि योग जैसी धरोहर को कोई और धर्म अपने नाम पर नहीं बेच सकता। हमें सोशल मीडिया, शिक्षा और सांस्कृतिक मंचों पर अपनी आवाज उठानी होगी। बीबीसी जैसे मीडिया संस्थानों का बहिष्कार करना चाहिए और उनके एजेंडे को उजागर करना चाहिए। जब तक हम चुप रहेंगे, ये ताकतें हमारी संस्कृति पर हमले करती रहेंगी। इसलिए भारतीयों की जिम्मेदारी है कि योग को गर्व से अपनाएं और उसके वास्तविक स्वरूप को दुनिया तक पहुंचाएं।
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10. निष्कर्ष: योग भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग
निष्कर्ष यही है कि योग सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति की आत्मा है। इसे किसी भी हालत में दूसरे धर्मों से जोड़कर पेश करना सांस्कृतिक अपराध है। बीबीसी की ‘इस्लामी योग’ रिपोर्ट इस बात का प्रमाण है कि पश्चिमी और वामपंथी संस्थान अभी भी भारत की जड़ों को तोड़ने में लगे हैं। लेकिन अगर हम एकजुट होकर योग और अपनी संस्कृति का सम्मान करेंगे, तो कोई भी ताकत इसे कमजोर नहीं कर पाएगी। योग को उसका वास्तविक स्वरूप देना और उसे सनातन धर्म की धरोहर के रूप में दुनिया तक पहुंचाना हम सभी भारतीयों का कर्तव्य है।
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