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रोहिंग्या शरणार्थियों के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका:

रोहिंग्या शरणार्थियों को सुविधाओं की मांग

‘रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ (R4R) नामक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए सरकारी सुविधाओं की माँग की है। इस याचिका में विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ और राशन कार्ड जैसी सुविधाओं की माँग की गई है, जिनका लाभ फिलहाल भारतीय नागरिक ही उठा सकते हैं।

याचिकाकर्ता के अनुसार, रोहिंग्या शरणार्थियों को स्कूलों और अस्पतालों में प्रवेश नहीं दिया जाता क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं होता।

याचिका के अनुसार, रोहिंग्या शरणार्थी संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) द्वारा प्रमाणित शरणार्थी हैं और इसलिए उन्हें भारतीय नागरिकता के दस्तावेज प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। फिर भी, याचिका में यह माँग की गई है कि उन्हें आधार कार्ड के अभाव में भी सभी सरकारी सुविधाएँ मिलनी चाहिए।

इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एनजीओ से यह जानकारी देने को कहा है कि दिल्ली में रोहिंग्या समुदाय के लोग कहाँ-कहाँ बसे हुए हैं और वे अभी किन-किन सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं।


अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्वेस और उनकी भूमिका

इस याचिका को दायर करने वाले वकील कॉलिन गोंसाल्वेस का नाम मानवाधिकार मामलों में काफी चर्चित रहा है। वे ‘ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क’ (HRLN) के संस्थापक हैं और कई विवादित मामलों में याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत में पेश हो चुके हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनके संगठन को जॉर्ज सोरोस के एनजीओ से भी वित्तीय सहायता मिल चुकी है।

गोंसाल्वेस का संगठन कई ऐसे मामलों में कानूनी सहायता प्रदान करता है, जिनमें सरकार के फैसलों को चुनौती दी जाती है। उदाहरण के लिए:

  • राजद्रोह कानूनों के खिलाफ अभियान
  • रोहिंग्याओं को मुफ्त कानूनी सहायता
  • इस्कॉन के ‘अक्षय पात्र’ फाउंडेशन के खिलाफ अभियान
  • शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के कार्यान्वयन में सक्रियता

R4R का वित्तीय स्रोत और उद्देश्य

‘रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ (R4R) एक अंतरराष्ट्रीय वित्त पोषित संगठन है, जिसे 2017 में पंजीकृत किया गया था। इसे ‘ग्लोबल स्टेटलेसनेस फंड’ (GSF) से धन प्राप्त होता है, जो नीदरलैंड स्थित ‘इंस्टीट्यूट ऑन स्टेटलेसनेस एंड इंक्लूजन’ की एक परियोजना है।

इसके अलावा, R4R को ‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ से भी धन प्राप्त होता है, जो जॉर्ज सोरोस का संगठन है।

इस एनजीओ का मुख्य उद्देश्य रोहिंग्या समुदाय के लोगों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें कानूनी सहायता प्रदान करना है।

इसके शिक्षा और आंदोलन निर्माण निदेशक अली जौहर ‘रिफ्यूजी इंटरनेशनल’ के फेलो रह चुके हैं। वे मूल रूप से म्यांमार के रखाइन राज्य के रहने वाले हैं और 2005 में भारत आए थे।


रोहिंग्या शरणार्थी बनाम अवैध घुसपैठिया?

यह मामला केवल मानवाधिकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का भी मुद्दा जुड़ा हुआ है।

केंद्र सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि रोहिंग्या शरणार्थी नहीं, बल्कि अवैध घुसपैठिए हैं।

कई सुरक्षा एजेंसियों ने रिपोर्ट दी है कि रोहिंग्याओं के बीच कट्टरपंथी विचारधारा पनप रही है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

भारत में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे में खुफिया एजेंसियों ने यह भी रिपोर्ट दी है कि इनमें से कुछ लोगों के संबंध आतंकी संगठनों से भी हो सकते हैं।

इसके अलावा, दिल्ली, जम्मू और हैदराबाद में बसे रोहिंग्या शरणार्थियों के कारण स्थानीय जनसंख्या संतुलन भी प्रभावित हो रहा है।

कई राज्यों ने रोहिंग्याओं को अपने क्षेत्र से हटाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।


निष्कर्ष: सुप्रीम कोर्ट का फैसला और संभावित परिणाम

सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका का फैसला आने वाले समय में रोहिंग्याओं की स्थिति को लेकर अहम भूमिका निभा सकता है।

यदि कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करता है और रोहिंग्याओं को आधार कार्ड के बिना सरकारी सुविधाएँ देने का आदेश देता है, तो यह एक नज़ीर बन सकता है और भविष्य में अन्य अवैध प्रवासियों के लिए भी कानूनी आधार तैयार कर सकता है।

वहीं, यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका को खारिज कर देता है, तो यह सरकार की नीति को समर्थन देने वाला फैसला होगा, जिसमें अवैध प्रवासियों को भारत से बाहर निकालने की योजना शामिल है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि अदालत इस मामले में राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों के बीच कैसे संतुलन बनाती है।


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