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इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: पत्नी का घर से बाहर निकलना, पर्दा न करना और दोस्ती रखना तलाक के लिए क्रूरता नहीं मानी जा सकती

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि पत्नी अपनी मर्जी से घर से बाहर निकलती है, पर्दा नहीं करती और लोगों से दोस्ती रखती है, तो यह पति के खिलाफ क्रूरता का कारण नहीं माना जा सकता। यह निर्णय लगभग 23 साल से अलग रह रहे एक दंपति के तलाक के मामले में दिया गया। इस फैसले में अदालत ने पति द्वारा पत्नी पर लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया और कहा कि ये कारण तलाक का आधार नहीं बन सकते।

मामले का संदर्भ

यह मामला महेंद्र प्रसाद नामक व्यक्ति द्वारा दायर एक याचिका से जुड़ा था। महेंद्र प्रसाद ने अदालत से तलाक की मांग करते हुए आरोप लगाया था कि उनकी पत्नी पिछले तीन दशकों से उनके साथ नहीं रहती। वह बाहर जाकर लोगों से मिलती है, पर्दा नहीं करती और एक अन्य व्यक्ति के साथ संबंध बनाती है। महेंद्र का यह भी कहना था कि शादी के कुछ सालों बाद ही उनके बीच संबंधों में खटास आ गई और लगभग 30 वर्षों से दोनों अलग-अलग रह रहे थे।

मामला क्या था?

महेंद्र प्रसाद और उनकी पत्नी की शादी 1990 में हुई थी, और 1995 में उनके घर एक बेटा भी हुआ था। महेंद्र ने आरोप लगाया कि शादी के बाद से ही उनके बीच संबंध ठीक नहीं रहे। उनके अनुसार, दोनों केवल 8 महीने ही एक साथ रह पाए थे, उसके बाद से पत्नी का घर छोड़ना और अन्य लोगों से मिलना जारी रहा। महेंद्र ने यह भी आरोप लगाया था कि पत्नी विवाह के बावजूद अन्य पुरुषों के साथ अवैध संबंध रखती है।

महेंद्र ने अदालत से यह भी कहा कि पत्नी तलाक के लिए राजी नहीं हो रही, जबकि वह 23 साल से अलग रह रहे थे।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणियाँ

पत्नी के स्वतंत्र आचार-व्यवहार को क्रूरता नहीं माना जा सकता

हाई कोर्ट ने महेंद्र प्रसाद के उन आरोपों को खारिज कर दिया, जिनमें उन्होंने कहा था कि उनकी पत्नी बाहर जाकर लोगों से मिलती है, और पर्दा नहीं करती। अदालत ने कहा कि यह स्वतंत्रता का हिस्सा है और इसे क्रूरता नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर पत्नी अवैध संबंधों में लिप्त नहीं है, तो समाज के अन्य लोगों से मिलना, अकेले यात्रा करना या अपने निर्णयों को स्वतंत्र रूप से लेना, क्रूरता के अंतर्गत नहीं आता।

पति द्वारा लगाए गए गालियाँ देने और अपमान के आरोपों को खारिज किया

महेंद्र ने अपनी पत्नी पर आरोप लगाया था कि वह उन्हें गालियाँ देती थी और उनकी आर्थिक स्थिति का मजाक उड़ाती थी। हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस आरोप को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि महेंद्र ने यह नहीं बताया कि यह गालियाँ कब, कहां और किस संदर्भ में दी गईं। जब तक गालियाँ देने या अपमानित करने का समय, स्थान और स्थिति स्पष्ट नहीं होती, तब तक इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

"पंजाबी बाबा" के आरोप को भी नकारा

महेंद्र ने यह भी आरोप लगाया था कि उनकी पत्नी का किसी "पंजाबी बाबा" नामक व्यक्ति के साथ संबंध था। हालांकि, अदालत ने इस आरोप को भी खारिज कर दिया और इसे बिना किसी ठोस प्रमाण के मात्र आरोप माना।

23 वर्षों का अलगाव तलाक का पर्याप्त कारण

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि लगभग 23 वर्षों तक एक-दूसरे से अलग रहना, और अब भी एक साथ रहने को राजी न होना, इस दंपति की शादी को अपने आप समाप्त कर देता है। अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि दोनों की शादी पहले ही टूट चुकी है, और ऐसे मामलों में तलाक को स्वीकार करना आवश्यक हो जाता है।

तलाक और संपत्ति का विभाजन

हाई कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि महेंद्र और उनकी पत्नी दोनों ही आर्थिक रूप से सक्षम हैं, क्योंकि दोनों ही नौकरी करते हैं। इसके अतिरिक्त, उनका बेटा अब 29 साल का हो चुका है और उसे किसी प्रकार के गुजारा भत्ते की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में कोर्ट ने तलाक के बाद किसी भी प्रकार का गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया।

हाई कोर्ट का निष्कर्ष

हाई कोर्ट ने इस मामले में तलाक को मंजूरी देते हुए कहा कि पति और पत्नी के बीच इतने वर्षों तक अलगाव के बाद एक दूसरे के साथ रहने की कोई संभावना नहीं दिखती। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि अगर किसी भी दंपति के बीच शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक संबंधों में पूरी तरह से टूट चुका हो, तो ऐसे मामलों में तलाक देना उचित होता है।

फैसला के प्रभाव

इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भारतीय अदालतें अब पारंपरिक दृष्टिकोण से हटकर, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और रिश्तों में सामंजस्य के सिद्धांतों को महत्व दे रही हैं। यह निर्णय उन मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करेगा जहां दंपतियों के बीच लंबे समय से अलगाव हो और कोई भी पक्ष तलाक के लिए राजी न हो।

निष्कर्ष

इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह निर्णय तलाक के मामलों में एक नया दृष्टिकोण पेश करता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारिवारिक रिश्तों के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी है। यदि दोनों पक्ष लंबे समय से अलग रह रहे हों और रिश्ते में कोई सुधार की संभावना न हो, तो ऐसे मामलों में तलाक को स्वीकार किया जा सकता है। इस फैसले से यह भी साफ है कि तलाक के मामलों में आरोपों की वास्तविकता को भी सख्ती से परखा जाता है और बिना ठोस प्रमाण के आरोपों को नहीं माना जाता।


संक्षेप में

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 23 साल से अलग रह रहे दंपति के मामले में कहा कि पत्नी का अपनी मर्जी से घर से बाहर जाना, पर्दा न करना और लोगों से दोस्ती रखना तलाक का कारण नहीं हो सकता। कोर्ट ने पति द्वारा लगाए गए आरोपों को भी खारिज किया और दोनों के अलगाव को तलाक का पर्याप्त आधार माना।