सारांश: प्रीतिलता वड्डेदार भारत की स्वतंत्रता संग्राम की पहली महिला बलिदानी थीं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अदम्य साहस और बलिदान का परिचय दिया। चिटगाँव (अब बांग्लादेश) में जन्मी प्रीतिलता ने उच्च शिक्षा प्राप्त की और क्रांतिकारी संगठनों से जुड़कर कई महत्वपूर्ण हमलों में हिस्सा लिया। मास्टरदा सूर्य सेन के नेतृत्व में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। 1932 में यूरोपियन क्लब पर धावा बोलते हुए उन्होंने वीरगति प्राप्त की। प्रीतिलता का योगदान स्वतंत्रता संग्राम में अद्वितीय है और उनकी कहानी गुमनाम नहीं रहनी चाहिए।
1. प्रारंभिक जीवन और शिक्षा : प्रीतिलता वड्डेदार का जन्म 5 मई 1911 को चिटगाँव (अब बांग्लादेश) में हुआ। उनका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, लेकिन उनके पिता ने उन्हें अच्छी शिक्षा दी। बचपन से ही प्रीतिलता एक मेधावी छात्रा थीं। 1927 में उन्होंने मैट्रिक और 1929 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। ढाका बोर्ड में नंबर वन आने के बाद प्रीतिलता ने कोलकाता के बेथ्यून कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। हालाँकि, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनकी डिग्री रोक दी थी, जो मरणोपरांत उन्हें 2012 में प्रदान की गई।
2. क्रांतिकारी विचारधारा से जुड़ाव : शिक्षा के दौरान ही प्रीतिलता की क्रांतिकारी गतिविधियों में रुचि बढ़ी। ईडन कॉलेज में पढ़ाई के दौरान, उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी लीला नाग के दीपाली संघ में शामिल होकर सक्रिय क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया। 1930 के दशक में बंगाल में गाँधी के अहिंसा के विचारों का परित्याग कर अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का दौर शुरू हुआ। इसी समय में उन्होंने मास्टरदा सूर्य सेन से मुलाकात की, जो बाद में उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।
3. मास्टरदा सूर्य सेन के नेतृत्व में संघर्ष : मास्टरदा सूर्य सेन ने प्रीतिलता की क्रांतिकारी सोच और नेतृत्व क्षमता को पहचाना और उन्हें अपने संगठन में शामिल किया। उन्होंने प्रीतिलता को हमलों का नेतृत्व करने के लिए प्रशिक्षित किया। चिटगाँव शस्त्रागार पर 18 अप्रैल 1930 को हुए हमले में प्रीतिलता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें उन्होंने टेलीफोन लाइनों और टेलीग्राफ कार्यालयों को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया। उनके इस अद्वितीय साहस ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को और भी तीव्र कर दिया।
4. रामकृष्ण बिस्वास की फाँसी और प्रीतिलता का संकल्प : 1931 में क्रांतिकारी रामकृष्ण बिस्वास को अंग्रेजों ने फाँसी दे दी। इस घटना ने प्रीतिलता को और भी प्रेरित किया और उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों को और मजबूती दी। रामकृष्ण बिस्वास की फाँसी के बाद प्रीतिलता ने उनकी क्रांतिकारी विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को और तेज कर दिया।
5. महिला क्रांतिकारी के रूप में अद्वितीय योगदान : उन दिनों में महिलाओं को क्रांतिकारी समूहों में शामिल करना असामान्य था, लेकिन प्रीतिलता ने इस चुनौती को स्वीकार किया। उन्होंने मास्टरदा सूर्य सेन के नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण अभियानों में हिस्सा लिया और ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ सफलतापूर्वक हमले किए। प्रीतिलता का योगदान भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन में अद्वितीय रहा, जिसने कई महिलाओं को प्रेरित किया।
6. यूरोपियन क्लब पर धावा : 1932 में प्रीतिलता ने अंग्रेजों के नस्लवादी यूरोपियन क्लब पर हमला किया, जहाँ भारतीयों को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। इस हमले के दौरान उन्होंने क्लब को नष्ट कर दिया, लेकिन खुद गंभीर रूप से घायल हो गईं। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर इस हमले को सफल बनाया और ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ एक मजबूत संदेश दिया।
7. बलिदान और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान : यूरोपियन क्लब पर धावा बोलने के बाद प्रीतिलता ने खुद को गिरफ्तार होने से बचाने के लिए साइनाइड खा लिया और वीरगति प्राप्त की। उनकी इस बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ ला दिया। प्रीतिलता की शहादत ने स्वतंत्रता सेनानियों को और अधिक प्रेरित किया और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष को और तेज किया।
8. गुमनाम इतिहास और अनदेखा योगदान : प्रीतिलता वड्डेदार का नाम इतिहास की किताबों में उतनी प्रमुखता से नहीं आया, जितना उनका योगदान था। उनके बलिदान और साहस को भुला दिया गया, जबकि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी गाथा को जन-जन तक पहुँचाना और उनके योगदान को याद रखना हमारा कर्तव्य है।
9. प्रीतिलता वड्डेदार की प्रेरणा : प्रीतिलता वड्डेदार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की उन नायिकाओं में से एक हैं, जिनका योगदान अनमोल है। उनका जीवन और बलिदान हमें सिखाता है कि मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से बड़ा कोई कार्य नहीं है। उनके अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी और हमें उनके बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए।
निष्कर्ष : प्रीतिलता वड्डेदार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा थीं, जिन्होंने अपने साहस और बलिदान से अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया। उनके योगदान को गुमनामी से बाहर लाना और उनकी कहानी को हर भारतीय तक पहुँचाना आवश्यक है। उनका बलिदान स्वतंत्रता संग्राम की गाथा का अभिन्न हिस्सा है और उनकी प्रेरणा हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगी।