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पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI का हनीट्रैप: भारतीय वैज्ञानिकों की सुरक्षा में सेंध

भारत की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का महत्वपूर्ण योगदान है। यह जानकर दुख होता है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने इन महत्वपूर्ण व्यक्तियों को निशाना बनाकर हनीट्रैप के माध्यम से संवेदनशील जानकारी चुराने का प्रयास किया है। हाल ही में, ब्रह्मोस मिसाइल के इंजीनियर निशांत अग्रवाल के मामले ने इस खतरनाक साजिश को उजागर किया है।

हनीट्रैप की परिभाषा और इसके प्रभाव : हनीट्रैप क्या है?
हनीट्रैप एक प्रकार की खुफिया तकनीक है, जिसमें एक व्यक्ति को लुभाकर या बहकाकर उससे महत्वपूर्ण और संवेदनशील जानकारी प्राप्त की जाती है। इस प्रकार की साजिश में सोशल मीडिया का व्यापक उपयोग किया जाता है। जासूस नकली पहचान के माध्यम से अपने लक्ष्य को भावनात्मक रूप से प्रभावित करते हैं और फिर उनसे गुप्त जानकारी हासिल करते हैं।

ISI की रणनीति :
ISI के जासूस भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को निशाना बनाकर उन्हें हनीट्रैप में फंसाने की साजिश रचते हैं। वे सोशल मीडिया पर भारतीय लड़कियों के नाम से फर्जी आईडी बनाते हैं और इनकी मदद से वैज्ञानिकों से संपर्क करते हैं। इन फर्जी आईडी में से कुछ नाम हैं सेजल कपूर, नेहा शर्मा, पूजा रंजन, अनामिका शर्मा, और अदिति अग्रवाल। इन नकली आईडी के जरिए जासूस भारतीय वैज्ञानिकों से व्यक्तिगत जानकारी और गुप्त जानकारी चुराने का प्रयास करते हैं।

निशांत अग्रवाल का मामला, फेसबुक के माध्यम से संपर्क :
निशांत अग्रवाल, जो कि ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना के सीनियर सिस्टम इंजीनियर थे, को भी इसी तरह हनीट्रैप का शिकार बनाया गया था। निशांत ने सेजल नाम की एक फर्जी फेसबुक आईडी पर भरोसा किया और उससे बातचीत शुरू की। सेजल नाम का यह अकाउंट वास्तव में पाकिस्तान से संचालित किया जा रहा था।

साइबर अटैक की योजना :
सेजल ने निशांत को बताया कि वह इंग्लैंड की एक कंपनी हेस एविएशन में भर्ती करती है। इस भर्ती प्रक्रिया के हिस्से के रूप में, सेजल ने निशांत के लैपटॉप पर कुछ सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करवाए, जिनके नाम थे क्यूव्हिस्पर, चैट टू हायर, और एक्स ट्रस्ट। वास्तव में, ये सॉफ्टवेयर वायरस थे, जिनका उद्देश्य निशांत के लैपटॉप से डेटा चुराना था। इन सॉफ्टवेयर के जरिए पाकिस्तानियों ने ब्रह्मोस से जुड़ी गुप्त जानकारी चुरा ली।

UP ATS की कार्रवाई :
उत्तर प्रदेश ATS ने इस मामले का खुलासा किया और कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त कीं। एक ATS अधिकारी ने बताया कि सेजल नाम का यह अकाउंट साइबर अटैक की योजना भी बना रहा था। निशांत अग्रवाल को 2018 में गिरफ्तार किया गया था और हाल ही में उन्हें गोपनीय जानकारी साझा करने का दोषी पाया गया है। नागपुर में चले मुकदमे में उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।

अन्य मामलों में प्रयास, वायुसेना के पूर्व कर्मचारियों पर हमला :
ISI ने भारतीय वायुसेना के दो पूर्व कर्मचारियों को भी निशाना बनाने का प्रयास किया था। उन्होंने भी फर्जी फेसबुक आईडी के जरिए इन कर्मचारियों से भारतीय सुरक्षा व्यवस्थाओं के विषय में जानकारी जुटाने की कोशिश की। हालांकि, इस मामले में वे सफल नहीं हो पाए।

लखनऊ के एक पूर्व वायुसेना कर्मचारी का मामला :
लखनऊ के एक पूर्व वायुसेना कर्मचारी के साथ भी इसी प्रकार का प्रयास किया गया था। ISI ने फर्जी आईडी का उपयोग करके इनसे जानकारियाँ जुटाने की कोशिश की, लेकिन यह साजिश भी असफल रही।

सोशल मीडिया और साइबर सुरक्षा, सोशल मीडिया का दुरुपयोग :
सोशल मीडिया एक शक्तिशाली उपकरण है, जिसका उपयोग संचार, नेटवर्किंग और जानकारी साझा करने के लिए किया जाता है। हालांकि, इसका दुरुपयोग भी व्यापक है। ISI जैसे जासूस इसका उपयोग हनीट्रैप के माध्यम से संवेदनशील जानकारी चुराने के लिए कर रहे हैं।

साइबर सुरक्षा का महत्व :
इस प्रकार के मामलों से यह स्पष्ट होता है कि साइबर सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों को साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूक होना चाहिए और सोशल मीडिया पर अज्ञात और संदिग्ध संपर्कों से सावधान रहना चाहिए।

निष्कर्ष :
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI द्वारा हनीट्रैप के माध्यम से भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को निशाना बनाना गंभीर चिंता का विषय है। निशांत अग्रवाल का मामला इस साजिश का एक उदाहरण है, जिसमें उन्हें फर्जी फेसबुक आईडी के जरिए फंसाया गया और संवेदनशील जानकारी चुराई गई। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहकर ऐसे मामलों का खुलासा करना चाहिए और संबंधित व्यक्तियों को जागरूक करना चाहिए। साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता और सतर्कता ही हमें इन खतरों से बचा सकती है।