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(EVM) पर उठे सवाल: एलन मस्क कितना सही ? एक विश्लेषण

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी EVM के लेकर सोशल मीडिया एक्स के ओनर एलन मस्क ने एक चौकाने वाला बयान दिया है। मस्क की मानें, तो ईवीएम को एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से हैक किया जा सकता है।

अब विपक्षी पार्टियों एलन मस्क के बयान को आधार बनाकर सरकार पर सवाल उठा रही है। भारतीय राजनीति में ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता को लेकर कई बार सवाल उठाए गए हैं। विभिन्न चुनावों के दौरान, विपक्षी पार्टियों और कुछ समाजसेवकों ने ईवीएम के हैक होने की संभावनाओं पर सवाल उठाए हैं। लेकिन, इस परिप्रेक्ष्य में कुछ सवाल भी उठते हैं जिनका उत्तर समझना आवश्यक है।

अगर ईवीएम हैक होती तो बीजेपी 272 से नीचे क्यों रहती?
2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बड़ी जीत हासिल की। 2014 में बीजेपी ने 282 सीटें और 2019 में 303 सीटें जीतीं। सवाल यह उठता है कि अगर ईवीएम हैक होती, तो बीजेपी को 272 सीटों से कम सीटें क्यों मिलीं?

ईवीएम हैकिंग के दावे का मतलब है कि हर हालत में बीजेपी को ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए थीं। अगर बीजेपी ने वाकई में ईवीएम हैक की होती, तो वह 272 सीटों की सीमा से नीचे क्यों रहती?

अगर ईवीएम हैक होती तो मोदी जी काउंटिंग में पीछे क्यों चलते?
कई बार चुनावी काउंटिंग के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीट पर काउंटिंग के शुरुआती दौर में वह विपक्षी उम्मीदवार से पीछे चलते थे। अगर ईवीएम हैक की जाती तो शुरू से ही मोदी जी आगे क्यों नहीं रहते? वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत का मार्जिन लगभग डेढ़ लाख वोटों का था। अगर ईवीएम हैक की जाती, तो यह मार्जिन और भी ज्यादा हो सकता था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि ईवीएम हैक होने के बावजूद यह अंतर इतना कम क्यों रहा?

अगर ईवीएम हैक होती तो बीजेपी के 18 मंत्री चुनाव क्यों हारते?
2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के कई मंत्री हार गए। अगर ईवीएम हैक होती, तो पार्टी के महत्वपूर्ण नेताओं की हार क्यों होती? यह सवाल उन दावों के खिलाफ जाता है जो कहते हैं कि ईवीएम के जरिए चुनाव परिणामों में हेरफेर की जा सकती है।

अगर ईवीएम हैक होती तो बीजेपी अयोध्या क्यों हारती?
अयोध्या, जो कि बीजेपी के विचारधारा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, में बीजेपी की हार इस बात की ओर इशारा करती है कि ईवीएम हैकिंग के दावे सही नहीं हो सकते। अगर ईवीएम हैक की जाती तो बीजेपी को अपने महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्रों में जीतने में कोई दिक्कत नहीं होती।

अगर ईवीएम हैक होती तो मोदी जी गठबंधन का रिस्क क्यों लेते?
चुनावों में बीजेपी ने कई क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन किया। अगर ईवीएम हैक होती, तो बीजेपी को गठबंधन की जरूरत क्यों पड़ती?

ईवीएम हैकिंग के दावों का तकनीकी परिप्रेक्ष्य :
ईवीएम की सुरक्षा को लेकर चुनाव आयोग ने कई बार स्पष्ट किया है कि मशीनें अत्यधिक सुरक्षित हैं और उन्हें हैक करना असंभव है।

1. फिजिकल सुरक्षा: ईवीएम को मतदान केंद्रों पर पुलिस की निगरानी में रखा जाता है और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है।
2. अलगाव: ईवीएम इंटरनेट से कनेक्ट नहीं होतीं, जिससे साइबर हमलों का खतरा समाप्त हो जाता है।
3. टेक्निकल आडिट: ईवीएम की नियमित जांच और ऑडिट होते हैं, जिससे उनकी सुरक्षा को और भी मजबूत किया जाता है।

विपक्ष का दृष्टिकोण :
विपक्षी पार्टियों द्वारा ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जाते रहे हैं, विशेष रूप से जब चुनाव परिणाम उनके पक्ष में नहीं होते। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जहां हारने वाली पार्टी चुनाव प्रक्रिया पर संदेह करती है।

निष्कर्ष :
ईवीएम हैकिंग के आरोप भारतीय चुनाव प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर एक गंभीर सवाल उठाते हैं। लेकिन, जब हम उपरोक्त सवालों का विश्लेषण करते हैं, तो हमें यह समझ में आता है कि ईवीएम हैकिंग के दावों में कई खामियां हैं। भारतीय चुनाव प्रणाली को विश्वसनीय और पारदर्शी बनाने के लिए ईवीएम का उपयोग एक महत्वपूर्ण कदम है, और इसे बिना किसी ठोस प्रमाण के खारिज करना गलत होगा।

ईवीएम हैकिंग की संभावना के बावजूद चुनाव परिणामों का ऐसा होना यह दर्शाता है कि भारतीय लोकतंत्र की नींव मजबूत है और हमारी चुनाव प्रणाली में भरोसा होना चाहिए। केवल आरोपों के आधार पर प्रणाली को दोषी ठहराना सही नहीं है, जब तक कि ठोस और प्रमाणिक सबूत प्रस्तुत नहीं किए जाते।

इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि भारतीय लोकतंत्र में ईवीएम की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता पर विश्वास किया जाना चाहिए और बिना ठोस सबूतों के आधार पर संदेह करना गलत होगा।