माधवी लता, जिन्होंने हैदराबाद से चुनाव लड़ा, उनकी हार ने उनके समर्थकों और समाज के कई हिस्सों को हैरान कर दिया। माधवी लता ने चुनावी प्रचार के दौरान अनेक समुदायों, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत से कल्याणकारी कार्य किए। उनके प्रयासों का उद्देश्य था समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द्र और एकता को बढ़ावा देना। उन्होंने न केवल मुसलमानों की समस्याओं को सुना बल्कि उनके समाधान के लिए तत्परता से कार्य भी किया। उनके सामाजिक कार्यों में हिन्दू-मुस्लिम के बीच कोई भेदभाव नहीं था, जिससे उन्होंने सभी के दिलों में एक अलग स्थान बनाया था।
इसके बावजूद, जब चुनाव के नतीजे आए, तो यह देखा गया कि मुस्लिम समुदाय का समर्थन उन्हें प्राप्त नहीं हो पाया। यह स्थिति सोचने पर मजबूर करती है कि माधवी लता के द्वारा किए गए निष्पक्ष और परोपकारी कार्यों के बावजूद, 1% मुस्लिम मतदाता ने भी उन्हें वोट नहीं दिया। इस परिप्रेक्ष्य में, यह सवाल उठता है कि क्या चुनावी राजनीति में सामाजिक कार्यों की अहमियत को उचित मान्यता मिल पाती है, या फिर यह केवल सामुदायिक और धार्मिक समीकरणों का खेल बनकर रह जाती है। माधवी लता की हार इस बात की ओर इशारा करती है कि चुनावी परिणाम हमेशा सामाजिक सेवा के प्रयासों को सही तरीके से प्रतिबिंबित नहीं करते।