चलिए गांधी टोपी के कुछ रहस्यों पर जानकारी साझा करने की कोशिश करते हैं। ये गांधी टोपी एक षड्यंत्र था भारतीयो के सर से स्वाभिमान की प्रतीक हजारो सालो से चली आ रही पगड़ी उतरवाने का और नेहरू वंश की गुलामी करवाने का।
खादी से बानी तिकोनी सफ़ेद टोपी को गांधी टोपी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस टोपी का आविष्कार १९२० के आसपास हुआ था। जानकारों का यह भी मानना है कि इस टोपी के ओरिजनल इनवेंटर जवाहरलाल नेहरू थे तथा इस टोपी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए इसको गांधी नाम दिया गया था जैसा कि नेहरू परिवार के अन्य सदस्यों ने अपने सरनेम में गांधी का इस्तेमाल करके किया क्योंकि गांधी नाम उस समय ज्यादा बिकाऊ था। गांधी ने भी इस टोपी को केवल अपना ठप्पा लगाने के लिए सांकेतिक रूप में यदा कदा १९२०-२१ के बीच ही पहनी थी। जहां तक जानकारी है, १९२१ के बाद गांधी को इस टोपी को पहने हुए फोटो नहीं मिलती।
लेकिन नेहरू को इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी? समकालीन इतिहासकारों के अनुसार इसका कारण नेहरू के सर पर कम बाल का होना था। नेहरू सर ढकने के लिए तब तक अंग्रेजी हैट का इस्तेमाल करते थे लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय होने के बाद से उन्हें अंग्रेजी हैट छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके समकालीन कांग्रेसी कार्यकर्ता उनके हैट से चिढ़ते थे। उस समय अमूमन सभी कांग्रेसी कार्यकर्ता, मोहनदास करमचंद गांधी के, पगड़ी का इस्तेमाल करते थे लेकिन पगड़ी को हिंदुत्व का प्रतीक माना जाने के कारण और अपनी सेक्युलर छवि बनाने के लिए "आवश्यकता आविष्कार की जननी है" को चरितार्थ करते हुए नेहरू ने इस तिकोनी टोपी का आविष्कार किया जो बाद में गांधी टोपी के नाम से मशहूर हुई।
आप लोगों ने ध्यान दिया होगा, जहां गांधी को टोपी पहन हुए 1921 के बाद कभी नहीं देखा गया वहीं गांधी टोपी नेहरू के अंतिम समय तक उनके वस्त्र का अभिन्न अंग रही। नेहरू की बातों से ज्यादातर कांग्रेसी बिदकते थे। इसलिये इस नए आविष्कार को नेहरू के नाम से पापुलर होना मुश्किल था। अतः इस टोपी को गांधी टोपी नाम देकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पहचान से जोड़ दिया गया। मज़बूरी में कांग्रेसियो को स्वाभिमान की पगड़ी उतारकर ये नई टोपी पहनने पड़ी और इस तरह भारत से स्वदेशी पगड़ी पहनने का चलन खत्म जैसा हो गया।