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इतिहास, महारानी दिद्दा: कश्मीर की अद्वितीय शासिका

परिचय, महारानी दिद्दा, जिन्हें कश्मीर की कैथरीन के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय इतिहास की एक महान नायिका थीं। उन्होंने 10वीं और 11वीं शताब्दी में कश्मीर पर शासन किया और अपने समय की सबसे शक्तिशाली महिला शासक के रूप में जानी गईं। दिद्दा का जीवन संघर्ष, शौर्य, और रणनीतिक कौशल से भरा हुआ था, जिसने उन्हें एक महान शासिका बना दिया।

प्रारंभिक जीवन और विवाह :
दिद्दा का जन्म एक शक्तिशाली परिवार में हुआ था। उनकी शादी 26 वर्ष की आयु में कश्मीर के राजा क्षेमगुप्त से हुई, जो महाराज पर्वगुप्त के पुत्र थे। क्षेमगुप्त 950 ई. में कश्मीर के राजा बने, लेकिन वे कमजोर शासक थे और अधिकांश समय जुए और शिकार में बिताते थे। इस स्थिति में, दिद्दा को राजकाज का काम संभालना पड़ा और धीरे-धीरे वे इतनी ताकतवर हो गईं कि महाराजा के नाम के आगे महारानी का नाम लिया जाने लगा। 

शासन की शुरुआत :
958 ई. के आसपास महाराज क्षेमगुप्त का निधन हो गया। परंपरा के अनुसार, दिद्दा को सती होने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया। उन्होंने अपने बेटे अभिन्यु को गद्दी पर बिठाकर राजमाता बन गईं और शासन चलाने लगीं। प्रारंभ में, स्थानीय सरदारों ने उनके शासन का विरोध किया, लेकिन दिद्दा ने विद्रोह को कुचल दिया और अपना वर्चस्व स्थापित किया।

शस्त्र प्रशिक्षण और युद्ध कला :
महारानी दिद्दा ने शस्त्र प्रशिक्षण में महारथ हासिल की थी। उन्होंने नियुद्ध, यन्त्र मुक्ता, पाणि-मुक्ता, मुक्ता मुक्ता, और हस्त शस्त्र कला जैसी 52 युद्ध कलाओं का प्रशिक्षण लिया था। वे एक कुशल योद्धा और रणनीतिकार थीं, जिन्होंने मध्य एशिया तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

देशद्रोहियों पर कठोर कार्यवाही :
दिद्दा ने अपने राज्य की सुरक्षा और प्रगति के लिए देशद्रोहियों और अक्षम अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया। उन्होंने कई गद्दारों को मृत्युदंड दिया और योग्य लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया। वामपंथी इतिहासकारों ने उन्हें निर्दयी कहा, लेकिन राष्ट्रभक्तों और विदेशी इतिहासकारों ने उनकी कुशल प्रशासनिक क्षमता और शौर्य की प्रशंसा की।

महत्वपूर्ण युद्ध और विजय :
1.बोरिस द्वितीय का आक्रमण :
969 ई. में बाल्कन के कृम साम्राज्य के शासक बोरिस द्वितीय ने कश्मीर पर आक्रमण किया। दिद्दा ने अपनी कुशल रणनीति से बोरिस की सेना को पराजित कर दिया और बाल्कन और बुल्गारिया पर केसरिया परचम लहराया। 

2.यारोपोल्क प्रथम पर विजय :
972 ई. में दिद्दा ने रूस के शासक यारोपोल्क प्रथम को हराकर रूस साम्राज्य की एक चौथाई हिस्से पर अपना अधिपत्य स्थापित किया। यारोपोल्क ने अपनी पुस्तक 'दक्षिण एशिया नारी' में दिद्दा की बुद्धिमानी और शक्ति का वर्णन किया है।

नारी शिक्षा और विकास कार्य :
दिद्दा ने नारी शिक्षा और उत्थान के अनेक प्रकल्प शुरू किए। उन्होंने कई विकास योजनाएं प्रारंभ कीं और भिन्न भिन्न क्षेत्रों में योग्य लोगों को निर्माण कार्यों में दायित्व दिए। उन्होंने मठ और मंदिरों का निर्माण भी करवाया। श्रीनगर में एक मोहल्ला ‘दिद्दामर्ग’ और ‘दिद्दा मठ’ उनके नाम से जाने जाते हैं।

उत्तराधिकार और अंतिम समय :
महारानी दिद्दा ने वृद्धावस्था में अपने भाई उदयराज के युवा पुत्र संग्रामराज का राज्याभिषेक किया। संग्रामराज ने काबुल के राजा त्रिलोचनपाल के साथ मिलकर महमूद गजनवी को दो बार पराजित किया। दिद्दा ने अपने साहस और योग्यता से कश्मीर राज्य को संगठित रखा और अपने शासनकाल में शांति और समृद्धि लाई।

निष्कर्ष :
महारानी दिद्दा का जीवन भारतीय इतिहास में साहस, शौर्य, और नेतृत्व का प्रतीक है। उन्होंने कश्मीर को अपने कुशल शासन और युद्ध कौशल से सुरक्षित रखा और नारी सशक्तिकरण का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके कार्यों और उपलब्धियों ने उन्हें भारतीय इतिहास की महानतम शासिकाओं में स्थान दिलाया।