अभी कुछ महीने पहले अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई का नागरिकता कानून पर एक तंज भरा बयान दिया था जिसमें वह भारत सरकार पर और हिंदुओं पर तंज कस रहे थे। सोचिए इन शांतिदूतों को शरण देना या पालना मतलब आप एक काला नाग पाल रहे हैं जो मौका मिलते ही आपको डस लेगा।
जब अफगानिस्तान में तालिबान हावी हो गए थे तब अफगानिस्तान के बड़े बड़े नेता भागकर किसी और देश में नहीं बल्कि भारत में शरण लिए थे और वह भी अपने पूरे परिवार के साथ। यहां तक कि उस वक्त नजीबुल्लाह जो अफगानिस्तान के राष्ट्रपति थे वह नहीं भाग पाए लेकिन उनका परिवार भाग कर भारत आ चुका था।
हालांकि नजीबुल्लाह ने भागने की कोशिश की फिर अंत में वह संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय में शरण लिए और तालिबान ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय में ही फांसी पर लटका दिया और उनके शव को 15 दिनों तक यूं ही लटकने दिया और नजीबुल्लाह के साथ साथ उनके छोटे भाई को भी फांसी पर लटका दिया गया था।
नजीबुल्लाह की तीन बेटियां भारत में आ गई थी उन तीनों बेटियों को एम्स में एमबीबीएस में दाखिला भी मिल गया था। हामिद करजई की पूरी पढ़ाई भारत में हुई है। इतना ही नहीं इसके चार बेटों में से तीन बेटे भारत में पढ़े हैं और तालिबान के दौर में हामिद करजई खुद आउट उसका पूरा परिवार या तो हिमाचल में या फिर दिल्ली में रहता था और वो भी भारत सरकार द्वारा दिए जा रहे भत्ते पर रहता था, क्योंकि नियमों के अनुसार यदि किसी देश का कोई बड़ा नेता किसी दूसरे देश में कुछ समय के लिए राजनीतिक शरण लेता है तब वह देश उसकी पूरी जिम्मेदारी उठाता है।
हामिद करज़ई भारत में या उनका पूरा परिवार भारत में कहीं भी आता जाता था उसका पूरा TA-DA भारत सरकार भुगतान करती थी। फिर जब अफगानिस्तान का माहौल ठीक हुआ तब अफगानिस्तान के सभी बड़े नेता जिसमें हामिद करजई भी हैं वह वापस अफगानिस्तान गए। लेकिन वही हामिद करजई यह भूल गया हिंदुओं के देश ने ही उसे जिंदा रखा वरना मुस्लिमों के देश तालिबान ने तो जो जो वहां बच गए उनको फांसी पर लटका दिया।