12 जून को इंदिरा को इलाहाबाद हाईकोर्ट चुनाव में धांधली करने के कारण अयोग्य घोषित कर देता है। इंदिरा पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही थी कि 25 जून को इंदिरा आपातकाल लगा देती है। इसके बाद इंदिरा सारी शक्ति अपने पास ले लेती है। 7 सीनियर जजों को बाईपास कर अपना वाला सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस जो इंदिरा ने बनाया था, वो चीफ जस्टिस नवम्बर में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला पलट देता है और इंदिरा का चुनाव जीतना सही ठहरा देता है। इस जस्टिस एएन रॉय के बारे में आगे बताया जाए तो ये है कि ये हर काम इंदिरा को फोन कर कर और पूछकर किया करता था।
इसके बाद इंदिरा कानून बदल देती है और सुप्रीम कोर्ट की शक्तियां भी अपने पास ले लेती है जिससे उसके ऊपर कोई केस नही चल सके। उसके दिमाग मे शायद ब्रिटेन की राजशाही थी जहां पूरी सरकार और संविधान राजशाही की शपथ लेकर काम करता है और राजशाही ब्रिटेन में सर्वोच्च होती है। और दूसरा शायद उसके दिमाग में ये भी था कि अब प्रधानमंत्री की कुर्सी हमारे खानदान की जागीर बन चुकी है इसलिए मेरे बाद मेरे बेटों और उनके बच्चों ने ही सत्ता संभालनी है तो अपने खानदान के लिए ये कानून सुनिश्चित करकर जाऊं।
लेकिन इमरजेंसी हटते ही जब दोबारा चुनाव होते हैं तो इंदिरा हार जाती है और जनता पार्टी की सरकार बनती है जो इस कानून को पलट देती है। जिस इलाहबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन सिन्हा ने इंदिरा को अयोग्य करार दिया था उसके बारे में कांग्रेसी दरबारी कुलदीप नैयर ने लिखा है कि उस जज को फैसले से पहले लगातार परेशान किया गया। कांग्रेस के नेता जज के घर धमक जाते थे कि बताओ क्या फैसला देने वाले हो? जज के घर के आगे नारे लगाए जाते थे और जज को गाली दी जाती थी। CID भेज परेशान किया जाता था। घर के नौकर चाकरों को तक परेशान किया जाता है कि पता लगाओ क्या फैसला आने वाला है। और तो और सुप्रीम कोर्ट का जो चीफ़ जस्टिस एएन रॉय इंदिरा ने बनाया था वो हाईकोर्ट के जज जगमोहन सिन्हा के घर पहुंच जाता है कि बता दो क्या फैसला देने वाले हो।
जज को इतना परेशान किया गया कि वो अपने घर से ही भाग गए। इसके बाद कांग्रेसी जज के स्टेनो को धमकाने पहुंच गए कि फैसला तो तू ही टाइप कर रहा होगा तो बता क्या फैसला आने वाला है। वो भी भागकर जज के पास चले गया। परेशान होकर जज ने फिर अपने हाथों से फैसला लिखा ताकि कहीं उन्हें गिरफ्तार न कर लिया जाए और जिस दिन फैसले की घड़ी थी उस दिन इंदिरा को दोषी ठहरा दिया गया।
जो व्यक्ति अपने नेतृत्व में इलाहबाद हाईकोर्ट के जज जगमोहन सिन्हा को धमकाने पहुंचा था, 1980 में जब इंदिरा की वापसी हुई और उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस जीती तो उसे इनाम के रूप में यूपी का मुख्यमंत्री बना दिया जाता है। उस व्यक्ति का नाम था वीपी सिंह। यही वीपी सिंह फिर आदतानुसार 1988 में उसी इंदिरा के बेटे से बोफोर्स के नाम पर बगावत करता है और "गली गली शोर है, राजीव चोर है" के नारे लगवाता है और फिर प्रधानमंत्री भी बन जाता है।
खैर, 1977 में इमरजेंसी हटती है और नई सरकार आती है। साथ ही चीफ जस्टिस का भी कार्यकाल पूरा होता है। इसके बाद जनता पार्टी इंदिरा पर मुकदमे दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर देती है। इसके विरोध में फिर कांग्रेसियो का नंग नाच शुरू होता है। 1978 में हद तो ये होती है कि 2 कांग्रेसी नेता प्लेन हाईजैक कर डालते हैं। इनकी मांग होती है कि इंदिरा को रिहा करो। साथ ही इंदिरा, संजय के सारे लगे केस वापिस करवाओ और मोरारजी देसाई इस्तीफा दे और इंदिरा को प्रधानमंत्री बनवाओ। हालांकि बाद में ये अपनी गिरफ्तारी दे देते हैं। 2 साल बाद वापिस इंदिरा जब सत्ता में आती है तो इन दोनों को इनाम स्वरूप विधायक का टिकट मिलता है और मजे की बात दोनों जीत भी जाते हैं।
आज जो आप ये सब देखते हैं ना कि प्रधानमंत्री की कब्र खोदने की बात हो रही है। उनको गंदी से गंदी गाली दी जा रही है। उनकी हत्या की बातें की जाती हैं। ये सब कांग्रेसी कल्चर रहा है और ऐसा करने वालों को ये खानदान ईनाम भी देता रहा है, तो इनकी सरकार होती तो ये कांग्रेसी इस समय क्या कुछ नही कर रहे होते? इसीलिए इस खानदान की चापलूसी में आप नेता, पत्रकार, भांड, फुद्दूजीवी हर किसी को देखेंगे। किसी को किसी संस्था का चांसलर डायरेक्टर का लालच होता है, किसी को पद्म पुरस्कारों का, किसी को टिकट का लालच होता है तो किसी को मंत्रिपद का। सब इसीलिए जितना गिर सकते हैं, उतना गिरते हैं। बाद में सत्ता मिलते ही सबकी जेबें भर दी जाती हैं।
साथ ही आप ये भी समझ पाएंगे कि असल मे तानाशाही क्या होती है और आज जो ये बेशर्मी से ज्यूडिशरी बिक गयी, इलेक्शन कमीशन बिक गया, मीडिया बिक गयी करते हैं... उसका बिकना क्या होता था। आज जो बेशर्मी से सफेद झूठ बोला जाता है कि बोलने की आजादी खत्म कर दी गयी है, वो बात ये उसी मीडिया के सामने चिल्ला चिल्लाकर कहते हैं जिसे गोदी मीडिया कहते हैं।
खुलकर झूठ फैलाया जाता है कि विपक्ष को दबाया जा रहा है जबकि पूरे देश की यात्रा ये लोग उसी समय कर रहे होते हैं। दो मिनट में प्रधानमंत्री के पिता को गाली देने वाले को सीधा सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल जाती है और ज्यूडिशरी बिक गयी कहा जाता है। यही सुप्रीम कोर्ट से फिर ये चुनाव आयोग में दखल करवा देते हैं कि चुनाव आयोग निष्पक्ष नही है लेकिन जब कोर्ट या इनसे चुनाव आयोग द्वारा पूछा जाता है कि कौन सा चुनाव निष्पक्ष नही हुआ तो न कोर्ट कुछ बता पाता है और न ये, लेकिन इलेक्शन कमीशन को बिका हुआ बता उसमे घुसपैठ करा दी जाती है। EVM पर भी यही रवैया रहता है कि आरोप लगाते रहो लेकिन जब सामने आकर सबूत दिखाने को कहो तो भाग लिया जाता है।
इन सब झूठो में सिर्फ एक सच बात होती है और वो ये है कि जनता इन्हें नही चुन रही है और जब तक ऐसा नही होगा तब तक इस देश मे हर कोई बिका हुआ और सरकार तानाशाह ही कहलाती रहेगी। अब जनता को तय करना है कि या तो इन्हें चुनो या फिर इसी तरह की अराजकता दिखा दिखा साम दाम दण्ड भेद, किसी न किसी तरह ये सत्ता में आकर ही रहेंगे। फिर उसके लिए देश मे आग लगानी पड़े, बाहरी देशों से मदद लेनी पड़े, उद्योगपतियों पर हमला कर अर्थव्यवस्था बर्बाद कर जनता की हालत पाकिस्तान जैसी कर उसे सरकार के खिलाफ करना पड़े, भारत को एक राष्ट्र न बता और अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का उत्पीड़क बता इस देश के टुकड़े करवाने पड़ें या कोई भी और षड्यंत्र करना पड़े क्योंकि सत्ता तो इनका जन्मसिद्ध अधिकार है जो इनको मिल नही पा रहा है।