20वीं सदी की शुरुआत में जब महिलाओं को घर की सीमा से बाहर कदम रखने की भी मनाही थी, तब अमूल्य कुमार घोष ने कलकत्ता में युवा महिलाओं को पंख देने के इरादे से दो संगठन बनाए - 'छात्र संघ' और 'बालिका व्यास-समिति'; ताकि महिलाएं भी फिजिकल एक्टिविटीज़ और मार्शल आर्ट्स में हिस्सा लेकर इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकें।
लेकिन आखिर अमूल्य कुमार थे कौन? और वह कलकत्ता में एथलेटिक्स और बॉडीबिल्डिंग से कैसे जुड़े? अमूल्य का जन्म मई 1910 में हुआ था। बचपन से ही उन्हें तलवारबाजी सीखने में बेहद रूचि थी और वह घर में ही कई बार लाठी और चाकू के साथ खुद ही प्रैक्टिस किया करते। छोटी उम्र में ही पुलिन बिहारी दास की किताब 'लाठी खेला ओ आशी शिक्षा' से प्रेरित होकर उन्होंने इस कला में महारत हासिल करने का फैसला कर लिया था। और इसी इच्छा के साथ वह 1927 में फरीदपुर (अब बांग्लादेश में) से कलकत्ता आ गए थे।
कलकत्ता आकर वह अपने आदर्श पुलिन बिहारी से व्यक्तिगत रूप से मिले और पुलिन बिहारी भी तलवारबाजी में अमूल्य की विशेषज्ञता और हुनर से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपना शिष्य बना लिया। इसके बाद अमूल्य कुमार ने अपना लक्ष्य पाने के लिए और इस क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत की।
कुछ ही समय में, वह बेहतरीन खिलाड़ियों में गिने जाने लगे जो लाठी, चाकू और तलवार जैसे हथियारों के साथ पारंपरिक मार्शल आर्ट में अपने कौशल का प्रदर्शन करते हुए बिजली की गति से भी तेज नज़र आते थे। उन्होंने कलकत्ता के साथ-साथ बांकुरा, उत्तरी बंगाल, असम और देश के विभिन्न हिस्सों में आयोजित सभी प्रमुख प्रतियोगिताओं में भाग लिया और कई खिताब जीते। इस तरह उन्हें देशभर में पहचान मिली।
20वीं सदी की शुरुआत में बारींद्र कुमार घोष, जतींद्रनाथ बनर्जी और प्रमथनाथ मित्रा ने 1902 में अनुशीलन समिति की स्थापना की थी। पहले यह बंगाली युवाओं के लिए एक फिटनेस क्लब था लेकिन वास्तव में इसका उपयोग ब्रिटिश विरोधी क्रांतिकारियों के लिए एक भूमिगत सोसायटी के रूप में किया जाता था। धीरे-धीरे शहर में ऐसी और सोसाइटीज़ जन्म लेने लगीं और अखाड़े से जुड़े युवा इनका हिस्सा बनने लगे।
इसी के साथ शहर और उसके आसपास 'युवा संघ' जैसे कई फिजिकल फिटनेस ट्रेनिंग स्कूल भी खोले जाने लगे। लेकिन इनमें केवल पुरुष ही भाग ले सकते थे। ऐसे में समाज सुधारक और कुछ नेताओं ने विचार-विमर्श कर महिलाओं के लिए भी ऐसा कुछ शुरू करने का निर्णय लिया क्योंकि वह जानते थे कि एथलेटिक्स हो या आज़ादी की लड़ाई, महिलाओं के बिना कुछ भी सफलतापूर्वक कर पाना मुश्किल था।
फैसला तो ले लिया गया, लेकिन समाज का उत्कृष्ट भाग मानी जाने वाली बंगाली महिलाओं के हाथ में लाठी और तलवार और उन्हें नए अधिकार देने का आईडिया समाज के कई लोगों को पसंद नहीं आया। यह शुरुआत काफी बड़ी थी और इतिहास में पहले ऐसा कभी हुआ भी नहीं था। इसलिए इसका काफी विरोध भी हुआ। तब किसी की भी परवाह किए बिना, बड़ी हिम्मत से अमूल्य कुमार घोष ने महिलाओं के लिए दो संगठन बनाए और लाठी, तलवार, चाकू, जो भी बेसिक हथियार मिले, उनसे लड़कियों को ट्रेन करना शुरू कर दिया।
उन्होंने महिलाओं को अलग-अलग योग आसन और जापानी मार्शल आर्ट जुजुत्सु भी सिखाया। वह खुले मैदान में दिन-रात छात्राओं को मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग देते और हर तरह से उन्हें फिजिकली आत्मनिर्भर बनाने में लगे थे। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि अमूल्य कुमार घोष उन चंद समाज सुधारकों में से एक थे जिन्होंने महिला शक्ति के प्रति जागरूकता लाने के लिए लगातार काम किया और समाज में परिवर्तन लेकर आए। उन्होंने उस ज़माने में दुनिया से लड़कर लड़कियों को स्वतंत्र, सशक्त और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रशिक्षित किया और इतिहास में अपनी गहरी छाप छोड़ दी।