पंजाब में सिखों की जो तीन पवित्र नगरियाँ हैं उनमें से एक है सुल्तानपुर लोधी। बाकी दो हैं, श्री अमृतसर साहब और श्री आनंदपुर साहब। 'सुल्तानपुर लोधी' वो जगह है जहाँ गुरु नानकदेव जी १४ बरस रहे थे। सुल्तानपुर लोधी सिख बाहुल्य क्षेत्र है। उस इलाके में स्कूलों में 90% बच्चे सिख हैं। पिछले वर्ष 20 से 30 दिसंबर के बीच एक अभियान चला के स्कूल के बच्चों को गौरवशाली सिख इतिहास से अवगत कराया गया। स्कूल में 'चार साहिबजादे' फिल्म दिखाई गयी। पूरे 10 दिन तक कार्यक्रम चले। बच्चों ने प्रोजेक्ट बनाये। गूगल और यूट्यूब खंगाला गया।
बच्चों को होमवर्क दिया गया कि अपने दादा दादी, नाना नानी, मम्मी पापा से चार साहिबज़ादों की शहादत की कहानी सुनो और फिर उसे अपने शब्दों में लिखो। जो परिणाम आये वो स्तब्धकारी थे। बच्चों ने स्कूल आकर बताया कि अधिकाँश बुज़ुर्गों और माँ बाप को स्वयं नहीं पता कुछ भी... यहाँ तक कि चारों साहिबज़ादों के नाम तक याद नहीं। प्रधानाचार्या के अनुसार... इतने बड़े स्कूल में एक भी बच्चे का नाम अजीत सिंह', जुझार सिंह, जोरावर सिंह या फ़तेह सिंह नहीं!!
पूरे स्कूल में सिर्फ एक बच्चे का नाम जुझार सिंह है। इस जूझार सिंह नामक बच्चे के माता पिता NRI हैं और इटली में रहते हैं। जुझार की बहन का नाम ओलिविया है। पूरे स्कूल में एक भी बच्चे का नाम गोविंद सिंह या हरिकिशन सिंह नहीं है। जबकि ये वो लोग हैं जिन्होंने अपनी गर्दनें वार दीं कौम और धर्म की रक्षा में। ये हाल है सुल्तानपुर लोधी के एक स्कूल का जहाँ 14 बड़े गुरुद्वारे हैं और ये सिखों का एक अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है।.... शेष पंजाब का अंदाज़ा आप स्वयं लगा लीजिये। आखिर ऐसा क्यों है? क्या ये हमारे शिक्षा प्रणाली की विफलता नहीं है? क्यों हमने अपना इतिहास भुला दिया?
किसी ज़माने में पंजाब में ये परंपरा थी कि इस एक हफ्ते में (20 से 27 दिसंबर) लोग 'भूमिशयन' करते थे (क्योंकि माता गूजरी के साथ दोनों छोटे साहिबज़ादों को सरहिंद के किले में ठंडी बुर्ज में कैद कर रखा गया था और आपने ये तीनों ठंडी रातें ठिठुरते हुए बितायी थीं) उनके शोक या सम्मान में पंजाब के लोग ये एक सप्ताह ज़मीन पर सोते थे पर अब पंजाबियों ने इसे भी भुला दिया है। इस एक हफ्ते में कोई शादी ब्याह का उत्सव नहीं होते थे पर उस दिन जब कि दोनों छोटे साहिबज़ादों का बलिदान दिवस था, जालंधर की एक पार्टी में सिखों को सिर पर शराब के गिलास रखकर नाचते देखा। अब समझ में आया कि सैफ़ अली खान ने अपने बच्चों का नाम तैमूर क्यों रखा!! जब हम स्वयं ही अपने पूर्वजों के गौरव को भुलाते जा रहे हैं तो क्या हमें किसी और को दोष देने का कोई हक़ है!!?