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गांधी जी को क्यूं अब लोग भूल रहे है ?

कुछ समय पहले एक पत्रकार ने गांधी को अपने समय का सबसे सफल पाखंडी कहा था... अगर उस समय सोशल मीडिया होता, देश की जनता आज की तरह सामाजिक और राजनितिक रूप से जागरूक होती तो निःसंदेह आजादी के इतने सालो तक हम गांधी के नाम पर ठगे ना जाते।  मुझे इस बात में कोई शक नही है कि गाँधी अगर आज के युग मे होते तो बिल्कुल अप्रासंगिक होते, सही को सही और गलत को गलत बोलने की हिम्मत नही होना इसका महत्वपूर्ण कारण है। उस समय भी उनकी प्रासंगिकता संदेह के घेरे में है, आज़ादी मिलने में उनके द्वारा चलाये गए आंदोलन का योगदान शून्य ही था। गांधी के कारस्तानियों पे तो पूरी किताब लिखी जा सकती है, खैर ज्यादा नहीं मात्र तीन उदाहरण देखिये।

१. जनरल डायर जिसने जलियांवाला बाग में सैकड़ों लोगों को गोली से मरवा दिया था। उसकी हत्या शहीद उधम सिंह ने 1940 में लंदन में की। गांधी जी और कांग्रेस ने उधम सिंह की निंदा की।

२. लाला लाजपत राय के हत्यारों को मारने वाले भगत सिंह की माफी की कोशिश आधे मन से हुई क्योंकि उनको डर था कि इससे लार्ड इरविन गुस्से में आ जाएंगे जिनसे दांडी यात्रा के बाद एक पैक्ट के लिए मीटिंगे हो रही थी।

३. बंगाल में 1899 में भीषण अकाल पड़ा था जिसका प्रबंधन करने की ज़िम्मेदारी कर्जन वायली पर थी। उसने ऐसा काम किया कि लाखों लोग मारे गए। इसको 1909 में मदनलाल ढींगरा ने लंदन में चेहरे पर गोलियां मार कर खत्म किया था।

ये तीनों कोई पेशेवर हत्यारे नही थे, इन्होंने निजी या व्यवसायिक दुश्मनी के चलते या धर्म की लड़ाई के चलते इन अंग्रेजों को नही मारा था। इन्होंने देश की तरफ से इनके अत्याचारों का बदला लिया था, सिर्फ इन्ही को मारा न कि अंधाधुंध गोलियां चलाई। पर गांधी जी और कांग्रेस ने इनकी निंदा की क्योंकि हिंसा हमेशा निंदनीय है। इन लोगों को भटके हुए नौजवान कहा गया।

स्वामी श्रद्धानन्द वाला मामला तो सबको पता ही है, उसमें धर्म के कारण एक मुस्लिम अब्दुल ने हिन्दू को मार दिया था पर गांधी ने उसको गोल मोल बातें कर के अपना भाई कहा। तब उनसे इस हिंसा की कड़े शब्दों में निंदा नही हुई। ये भी कहा कि शांति के लिए हिंदुओ को अपना गला भी कटवा लेना चाहिए। गांधी मुस्लिमों की खुशामद करते थे। जब घर मे दो बच्चें हों तो जो सीधा बच्चा होता है उसको ही ज्ञान दिया जाता है कि तेरा भाई तो दुष्ट है पर तु तो समझदार है तू ही थोड़ी कम मिठाई ले ले।

गांधी जी कुछ भी करके यथास्थिति बनाये रखना चाहते थे, जबकि अम्बेडकर इस मामले में दूरदर्शी थे, उन्होंने बहुत पहले ही चेता दिया था कि इस्लामिक राष्ट्र की मांग उठेगी। सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद भी गांधी जी की इस्लाम के प्रति सोच से असहमत थे। भारत मे धर्म के आधार पर जो पहली राजनीतिक पार्टी बनी उसका नाम मुस्लिम लीग था, हिन्दू महासभा उसके बाद बनी।

 हिंदुओं की कट्टरता सिर्फ और सिर्फ मुस्लिमो की कट्टरता का प्रतिवाद है। आज के समय मे देखिए जो भी मुस्लिम तुष्टिकरण की बात करता है उसकी क्या हालत है? गांधी भी तुष्टिकरण ही करते थे आज के ज़माने में उनकी क्या प्रासंगिकता है आप खुद ही सोच सकते हैं।

कई लोग ज्ञान देते हैं कि विदेशों में गांधी के नाम की धूम है, यूनिवर्सिटी हैं। उन देशों का एक भी आदमी गांधी जी की तथाकथित चूतियापे वाली अहिंसा की या बंटवारे की बलि नही चढ़ा, मरने वाले सब भारतीय ही थे। पड़ोसी के घर मे भगतसिंह अच्छा ही लगता है। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा भी गांधी के बड़े फैन हैं, क्या उन्होंने ओसामा बिन लादेन को माफ कर दिया था? जिस गांधी दर्शन से एक हत्यारा अब्दुल भाई बन गया उसी गांधी दर्शन को मानने वाले किसी ने कभी हत्यारे गोडसे को भाई बोला क्या?

शायद सब पोथी वाले गांधी भक्त हैं। गांधी जी की हत्या के बाद गांधी के चेलों ने ही हज़ारों ब्राह्मणों को मार दिया, गांधी के नाम पर वोट लेने वाली पार्टी ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हज़ारों सिखों को ज़िंदा जलाया। उनके मानने वाले ही उनके कहे पर नही चले। कथनी और करनी में अन्तर होना ही पाखंड है। इस बात के कई उदाहरण उपलब्ध हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि गाँधी कहते कुछ थे और करते कुछ और ही थे।

गाँधी ने 50 वर्ष के आसपास की उम्र होने पर घोषित किया था कि अब वे ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे। अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा के लिए वे महिलाओं के साथ एकांतवास करते थे, स्वयं निर्वस्त्र होकर उनसे अपने शरीर की मालिश कराते थे और लड़कियों को निर्वस्त्र करके अपने साथ सुलाते थे। ऐसा उन्होंने स्वयं अपनी आत्मकथा में लिखा है। इन क्रियाओं को वे ‘ब्रह्मचर्य के प्रयोग’ कहा करते थे। क्या यह पाखंड नहीं है? इन प्रयोगों द्वारा गाँधी के ब्रह्मचर्य की परीक्षा तो हो जाती होगी, परन्तु उन महिलाओं के ब्रह्मचर्य का क्या होता था? कोई लड़की अपने सगे पिता के साथ भी निर्वस्त्र नहीं सो सकती।

परन्तु गाँधी गुप्त रूप से लम्बे समय तक ऐसा करते रहे। जब नोआखाली के दौरे के समय उनके निजी सचिव निर्मल कुमार बोस ने उनके इस कुकर्म की निंदा की और उनके निजी सचिव का पद छोड़ दिया, तो गाँधी ने इसे ‘ब्रह्मचर्य के प्रयोग’ कहते हुए इसे छोड़ने से साफ इनकार कर दिया। यहाँ तक कि सरदार पटेल ने भी उनसे ऐसे प्रयोगों को बन्द करने का आग्रह किया था, परन्तु वे नहीं माने।

किसी मूर्ख आदमी के कहने पर गाँधी ने दूध एकदम छोड़ दिया था और जिंदगी भर दूध न पीने का संकल्प किया था, क्योंकि उनके अनुसार दूध गाय या भेंस के थनों को खींचकर निकाला जाता है, इसलिए पशुओं के प्राप्त होने के कारण माँसाहार की श्रेणी में आता है। आश्चर्य यह है कि गाँधी अंडे को शाकाहारी मानते थे, क्योंकि अंडे मुर्गी स्वयं देती है। खैर, यहाँ तक तो ठीक है। उनके दूध न पीने पर या अंडा खाने पर हमें कोई आपत्ति नहीं है।

लेकिन गाँधी का पाखण्ड यह था कि दूध के बिना काम न चलने पर उन्होंने गाय या भेंस की जगह बकरी का दूध पीना शुरू कर दिया। क्या बकरी का दूध निकालने के लिए उसके थनों को नहीं खींचा जाता? क्या बकरी अपना दूध मूत्र की तरह स्वयं निकालती है? क्या गाँधी की परिभाषा के अनुसार बकरी का दूध माँसाहार नहीं है?

इसी तरह गाँधी ‘सादा जीवन उच्च विचार’ का दम भरा करते थे। इसलिए वे गरीबी में रहने का पाखंड करते थे। वे गरीबों की तरह रेल में तीसरी श्रेणी में यात्रा करते थे। लेकिन उनके लिए उनके चेले पूरा डिब्बे पर कब्जा कर लेते थे। इस गुंडागर्दी का गाँधी विरोध नहीं करते थे और अपनी सुविधा के लिए यह मान लेते थे कि उनके लिए जनता ने खुद डिब्बा खाली छोड़ दिया है।

वे बकरी का दूध पीते थे, इसलिए हर जगह बकरी उनके साथ ही जाती थी। वे इस बात की चिंता नहीं करते थे कि इस दिखावे पर कितना खर्च होगा। सरोजिनी नायडू ने एक बार स्पष्ट स्वीकार किया था कि गाँधी को गरीब बनाये रखने में हमें बहुत धन खर्च करना पड़ता है। क्या अधिक धन खर्च कराते हुए भी गरीबी में रहने का दिखावा करना पाखंड नहीं है?

गाँधी के पाखंड के सैकड़ो उदाहरण दिये जा सकते हैं। वे अपने विचारों और मान्यताओं को अपनी सुविधा के अनुसार तोड़ मरोड़ लेते थे। अहिंसा का दम्भ करते हुए भी उन्होंने कई बार मुसलमानों द्वारा की जाने वाली हिंसा को यह कहकर उचित ठहराया था कि वे तो अपने धर्म का पालन कर रहे थे।

गाँधी की अहिंसा ओर सत्यता भारत के इतहास का सबसे बड़ा झूठ है, अंग्रजों ने इस महा झूठ को पाला पोसा, इसकी आड़ में लाखों कत्ल किए। बाकी अहिंसा वगैरा तो बोलने में अच्छा लगता है, जो गांधी जी के समर्थन में बड़ी बड़ी बाते करते हैं वही 2 टिप्पणी के बाद भड़कने लगते हैं। शायद अब आप समझ गये होंगे की गाँधी को विश्व का सफलतम पाखंडी क्यों कहा गया।

अभी भी समय है हिन्दुओ सुधर जाओ, सेक्युलरिज्म का चोला उतारो अपना नही तो अपनी आनेवाली पीढ़ी के लिए ही सही मुसलमानों का बहिस्कार करो, वर्ना आपकी आने वाली पीढ़ी का हाल वही होगा जो हाल अभी हिंदुओं का पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में हो रहा है, बुद्धिस्ट और ईसाई तो समझ गए है आप कब समजोगे? जब ये आग आपके घर तक पहुचेगी तब?

अबसे सामान ऐसी जगह से खरीदे जिसका दूकानदार आपकी वजह से आपका त्योहार मना सके और उन दुकानदारो का विशेष ध्यान रखे जिन्होने CAA के विरोध मे दुकान बंद की थी। उन दुकानदार का भी ध्यान रखे जिनकी औलादे सोशल मिडिया पर राम मंदिर को तोड़ने का कैंपेन चला रही है। इनका आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार करे। आपकी वजह से कोई आपका त्योहार मना सके ऐसे दुकानदार से सामान ले ऐसे दुकान से कभी नही जो अपनी कमाई का एक  हिस्सा आतंकी संगठनो को देता हो। हलाल सर्टीफाइड सभी प्रोडक्ट और प्रोडक्ट बनाने वाले का सम्पूर्ण बहिस्कार करें।