बहन से दोनो भाई कहकर आए थे कि विवाह में जरूर आयेंगे, अगले महीने बहन की डोली जानी थी पर वे आजमगढ़ आ गए। अयोध्या के लिए सारे रास्ते बंद थे, उन्होंने पैदल जाने का निश्चय किया। दो सौ किलोमीटर यात्रा कर वे 30 अक्टूबर को दोनो भाई अयोध्या पहुंच गए। उत्तर प्रदेश में औरंगजेब द्वितीय का शासनकाल था। फौज फाटा लगाकर अयोध्या को छावनी में तब्दील किया जा चुका था। औरंगजेब ने ऐलान किया था कि परिंदा भी पर नही मार सकता है।
दो युवक निकले और ढांचे पर भगवा लहराया :
हनुमानगढ़ी से कारसेवक आगे बढ़े, कारसेवकों को रुख कर गोलियां चलने लगीं, वे गिरते गए पर उनमें से दो युवा निकले और ढांचे पर भगवा लहरा दिया। नारा लगा, बच्चा बच्चा राम का जन्मभूमि के काम का। सरयू खून से लाल हुई।
औरंगजेब कुपित हुआ उसने आदेश दिया कि ढांचे पर भगवा लहराने वालों को खोज निकाला जाय, 2 नवंबर का दिन आया। अबकी बार लाठी गोली एक तरफ रामभक्तो की छातियां दूसरी तरफ थीं। औरंगजेब ने आदेश दिया, मार दो सबको जो आगे बढ़े, कारसेवक आगे बढ़े मरने के लिए। अबकी बार सरयू में रक्त के साथ लाशें गिरी। तलाश उन दोनो भाइयों की थी। एक घर में वे दोनो रुके थे, अताताइयों को भनक लग गई।
छोटे भाई को घर से खींच कर गली में लाया गया, यह देखकर बड़ा भाई दौड़ा। गोली चली, राम से पहले शरद ने उसे अपने सीने पर ले लिया और राम मंदिर निर्माण की इच्छा लिए राम की धरती पर गिर गए, शरद को गिरता देख राम उसे संभालने को हुए कि दूसरी गोली उन्हे लगी। दोनो भाइयों ने अपना बलिदान दे दिया।
बहन रास्ता देखती रही पर भाई नही उनकी खबर आई। चार नवंबर 1990 को उनका अंतिम संस्कार सरयू के किनारे हुआ। आज जब मंदिर अपने भव्य स्वरूप का आकार ले रहा है, उसकी नींव को अपने पीठ पर धारण किए हुए कोठारी बंधु राम कच्छप बन चुके है।