कोरोना की आहट सुनते ही यदि सरकार सुरक्षा और सावधानी के कदम समय रहते उठाने लगे तो ये विरोधी चिल्लाने लगते हैं कि सरकार लोगों को कैद कर रही है, उनके खुले जीवन पर रोक लगा रही है और झूठमूठ कोरोना को लेकर भय का माहौल बना रही है जबकि कोरोना तो है ही नहीं।
कोई कहता है कोरोना का झूठा डर दिखा कर सरकार वस्तुत: हमारी यात्रा को रोकना चाहती है। लेकिन 140 करोड़ लोगों की विशाल जनसंख्या वाले इस देश में यदि एक व्यक्ति भी कहीं संक्रमित हो जाए तो यही विरोधी सरकार पर यह कहते हुए टूट पड़ेंगे कि सरकार ने समय रहते कदम क्यों नहीं उठाया? लोगों को सचेत क्यों नहीं किया और कोई दिशानिर्देश क्यों नहीं जारी किया?
वे पूरे देश में शोर मचा देंगे कि सरकार तो अंधी है, बहरी है, अक्षम है, अदूरदर्शी है और असंवेदशील है; इसे एक पल भी सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं! कोरोना की विगत लहरों के समय भी इन विरोधियों ने ऐसा ही घटिया व्यवहार किया था।घृणा की आग में रात-दिन जलनेवाले ये विकृत विरोधी पहले तो यह कहते थे कि भारत वैक्सीन अर्थात टीका बना ही नहीं सकता।
फिर मोदी जी के संकल्प, उद्यम एवं पुरुषार्थ को देख कहने लगे कि अभी तक टीका नहीं बना तो क्यों नहीं बना,बन रहा था तो आज ही क्यों नहीं बन गया और जब अंततः एक साल होते-होते ही कोरोना का टीका बल्कि दो-दो टीके भारत ने बना डाले तो ये पतित विरोधी कहने लगे कि यह वैक्सीन तो बेकार है, इसका कोई असर ही नहीं होगा। कोई कोई तो वैज्ञानिकों के अथक प्रयास से बने इस वैक्सीन को मोदी वैक्सीन तक कहने लगा।
जनता भ्रमित होकर टीका न लगवाये, इसके घृणित षड्यंत्र किए गए। कोरोना के उद्गम चीन का नाम आजतक भी न लेनेवाले थरूर ने तो विश्व भर में कोरोना फैलाने का जिम्मेदार भारत को ही ठहरा दिया! कोरोना काल में चिकित्सकों, नर्सों एवं चिकित्सा से जुड़े लोगों, सफाई कर्मचारियों, सुरक्षा और व्यवस्था संभालने वाले लोगों के स्तुत्य कार्यों के लिए थाली शंख घंटी आदि बजाकर इनका अभिनंदन करने की श्रेष्ठ प्रतीकात्मक भंगिमा तक का इन विरोधियों ने उपहास किया था।
तब ऐसे लोगों के गिरे हुए व्यवहार को देखकर लगता था मानों इनकी लड़ाई कोरोना से न होकर मोदी से है और ये चाहते हैं कि कोरोना खूब फैले ताकि मोदी जी की खूब बदनामी हो तथा ये लोग कोरोना से लड़ने में मोदी को अक्षम बताकर उन्हें सत्ता से हटा सकें! इसीलिए मोदी विरोध की अंधी अग्नि में जलते जलते ये विरोधासुर भारत, भारत की सेना, भारत की उपलब्धि और भारत की हरेक गौरवगाथा का विरोध करने लग जाते हैं। पक्ष और विपक्ष लोकतंत्र की मजबूती के लिए बहुत आवश्यक है लेकिन केवल विरोध के लिए विरोध और इसके चक्कर में देश का विरोध तथा देशविरोधी तत्वों का आलिंगन पतन की पराकाष्ठा है।
सरकार की नीतियों की त्रुटियों और दोषों को उजागर कीजिए, जोर शोर से कीजिए लेकिन विकल्प के साथ कीजिए! संसद के सदनों में और विधान मंडलों में सुलझे हुए ढंग से एक एक कर अपनी बात और अपने सुझाव रखिए, इसी से आपके सभ्य और सुयोग्य होने का पता चलेगा, सड़क छाप असभ्य और अराजक आचरण से नहीं!! लेकिन सरकार की आलोचना करने के चक्कर में अपनी ही सेना के पराक्रम और अपने ही वैज्ञानिकों की मेधा का अपमान भला कैसा विरोध है और यह विरोध है भी क्या?
ऐसा करके अपने प्राणपण से चौबीसों घंटे जुटी और डटी सेना और वैज्ञानिकों का मनोबल न गिराइए। अपनी कुर्सी चले जाने के शोक से बाहर निकलिए और मान लीजिए कि अब मोदी जी ही देश के प्रधानमंत्री हैं, आप नहीं! कल ही प्रधानमंत्री की कुर्सी से मोदी को धक्का मारकर उतार देने और स्वयं उस पर कूद कर बैठ जाने की आपकी धैर्यशून्य आतुरता एक लाइलाज बीमारी बन चुकी है जो आपको विक्षिप्त बना रही है; आपकी यह विक्षिप्तता देश पर बहुत भारी पड़ रही है मिस्टर विरोध!!
अटल जी और आडवाणी जी भी विपक्ष में रहे, दशकों तक रहे लेकिन क्या उन लोगों ने कभी ऐसा आचरण किया था? आज टीवी डिबेट में कुछ दलों के प्रवक्ता मोदी जी के लिए, सेना के लिए, हिन्दी भाषा के लिए, हमारे देवी देवताओं के लिए तथा हिन्दुत्व आदि के लिए गाली गलौज से भरी भाषा का प्रयोग इसलिए करते जा रहे हैं क्योंकि इनके अध्यक्ष और बड़े नेता ही ऐसी असंसदीय भाषा बोल बोलकर अपने दल के लोगों को लाइसेंस दे देते हैं। ऐसा निम्न स्तरीय व्यवहार देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण भी है और भविष्य में लोकतंत्र के लिए खतरनाक भी! भगवान ऐसा विपक्ष किसी देश को न दे!!