भारत में ईसाईयों की सबसे बड़ी संस्था मुम्बई में है। मुम्बई के कट्टर ईसाईयों द्वारा लिखी गयी पुस्तक “The Plain Truth, Worldwide Church of God P.O. Box 6727, Mumbai” द्वारा प्रकाशित की गयी है। उसमें लिखा है:
“चाहे सही हो या गलत आम लोग अनुकरणप्रिय होते हैं। जैसे भेड़ दूसरों के पीछे चुपचाप कत्लखाने में भी प्रविष्ट हो जाती है। किन्तु सुविचारी लोगों को निजी कृत्य की जाँच करते रहना चाहिए। कई लोग क्रिसमस की विविध प्रकार से सराहना करते रहते हैं किन्तु क्रिसमस का समर्थन न तो नया नियम करता है, न बाईबल में उसका कोई स्थान है और न ईसामसीह ने जिन्हें धर्मोपदेश दिया उन मूल शिष्यों ने भी क्रिसमस त्यौहार का कोई उल्लेख किया है।”
ईसाई प्रचार के पूर्व रोमन लोगों का जो धर्म था उसका यह त्यौहार चौथी शताब्दी में ईसाई परम्परा में सम्मिलित हुआ, क्योंकि क्रिसमस मनाने की प्रथा रोमन कैथोलिक चर्च की है। कैथोलिक एनसाइक्लोपीडिया देखिये जिसमें क्रिसमस शीर्षक के निचे लिखा है, “आरम्भ के ईसाई पर्वों में क्रिसमस का अंतर्भाव नहीं था। उसका प्रवेश प्रथम ईजिप्त में हुआ। उत्तरायण सम्बन्धी तत्कालीन समाज की जो उत्सव विधि थी वह क्रिसमस में सम्मिलित हो गयी।”
सन १९६४ में प्रकाशित आंग्ल ज्ञानकोश कहता है, “क्रिसमस त्यौहार ईसाईयों का नहीं है पर अगर उसी को निकाल दिया जाए तो ईसाइयत में कुछ नहीं रहता, इसाईयत खोखली बन जाएगी क्योंकि वही तो सबसे बड़ा दीर्घ अवधि का आनंदायी पर्व है। वह समाप्त हो गया तो इसाईयत ही समाप्त हो जाएगी।” ऊपर जिस ईसाई पुस्तक का उल्लेख किया गया है उसके पृष्ठ ३ पर लिखा है “जीजस का जन्म शरद ऋतु में हुआ ही नहीं।” एडम क्लार्क के लिखे कमेंट्री ग्रन्थ (खंड ५, पृष्ठ ३७०, न्युयोर्क संस्करण) में लिखा है कि “हमारे प्रभु २५ दिसम्बर को नही जन्मे थे, क्योंकि उन दिनों भेड़ चरने नहीं निकलते हैं। जीजस के जन्मदिन का कोई पता ही नहीं है।”
उपर्युक्त बातें और कट्टर ईसाईयों की चिंता बिलकुल सत्य है। इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं, “चौथी शताब्दी में मुट्ठी भर लोगों के इस पंथ को रोमन सम्राट कोन्स्टान्टिन और उसके शक्तिशाली रोमन सेना का समर्थन प्राप्त होते ही ईसाइयों ने वेटिकन (वाटिका के लोग) के वैदिक धर्मस्थल पर कब्जा कर लिया, वहां के वैदिक मठाधीश का कत्ल कर वहां ईसाई पुजारी बैठा दिया और रोमन लोगों की अधिकांश प्रथाओं पर धीरे धीरे इसाईयत का ठप्पा लगा दिया।” वे लिखते हैं, “रामनगर (रोम) की वाटिका (वेटिकन) हजारों वर्षों से वैदिक आर्य संस्कृति और धर्म का केंद्र होने से वेटिकन में सूर्य उत्तरायण का पर्व २५ दिसम्बर को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता था। इस दिन को सूर्य का जन्मदिन की तरह बाल सूर्य की मूर्ति बनाकर उसे सोमलता से सजाया जाता था। उस समय के ईसाईपंथी नेताओं ने चालाकी यह की कि रोम के सबसे उल्लासपूर्ण और दीर्घतम सूर्य उत्तरायणी उत्सव से ही ईसा के कपोलकल्पित जन्म का नाता जोड़ दिया।”
The New Schaff Herzog Encyclopaedia of Religious Knowledge में लिखा है कि “दीर्घतम रात्रि समाप्त होकर नए सूर्य के उत्तरायणी आगमन का तत्कालीन जनता के मन पर इतना प्रभाव था कि उस प्रसंग के सतरनालिया तथा ब्रुमालिया कहलाने वाले उत्सव को ईसाई लोग टाल नहीं सके। सूर्य देवता और सूर्य उत्तरायणी उत्सव सिर्फ इटली के एट्रूस्कन लोगों में ही प्रचलित नहीं था बल्कि यूरोप के ड्रुइडस अथवा सेल्टिक सभ्यता, ईजिप्त, ग्रीक आदि देशों में भी प्रसिद्ध था। इसका प्रमाण सन १९६४ में प्रकाशित आंग्ल ज्ञानकोश में मिलता है जिसमे लिखा है कि “सम्राट कोन्स्टान्टिन ने “रविवार” ईसाईयों को धार्मिक दिन तथा विश्रांति और छुट्टी का दिन इसलिए घोषित किया क्योंकि ईसवी पूर्व की धार्मिक प्रणाली में रविवार सूर्यपूजन का तथा छुट्टी का दिन होता था।”
कट्टर ईसाई शोधक इस सच्चाई से भली भांति परिचित हैं कि क्रिसमस ईसापूर्व काल से उस वैदिक संस्कृति का हिस्सा है जिसका झूठा विरोध कर और जिसकी अनावश्यक बुराई कर ईसायत लोगों पर थोपा गया। इसलिए कट्टर ईसाई और धर्मगुरुओं तथा शासकों ने न केवल क्रिसमस का विरोध किया बल्कि कई बार वे क्रिसमस पर प्रतिबन्ध लगाने में भी सफल हुए।
सन १६६० ईसवी में Massachusetts Bay Colony, New England, U.S.A. ने एक कानून के द्वारा क्रिसमस त्यौहार पर रोक लगानी चाही। उसमें लिखा था, “आम जनता को यह आदेश दिया जाता है की क्रिसमस मनाना ईसाई धर्म का उल्लंघन है। वस्तुएं भेंट देना लेना, एक दुसरे को क्रिसमस की बधाई देना, अच्छे अच्छे वस्त्र पहनना, मिष्ठान्न, भोजन और इसी प्रणाली के अन्य शैतानी व्यवहारों पर इस कानून द्वारा प्रतिबन्ध लगाया जा रहा है। उल्लंघन करने वाले को पांच शिलिंग दंड किया जाएगा।”
१७ वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में भी क्रिसमस मनाने पर यह कहकर प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि “क्रिसमस त्यौहार Pagan, Papish, Saturnalian, Satanic, Idolatrous और leading to idleness है।” जरा शब्दों पर गौर कीजिये क्रिसमस पर क्या क्या आरोप लगाये गये थे। Pagan यानि मूर्तिपूजक या भगवानवादी लोग, Papish यानि पापहर्ता वैदिक धर्मगुरु (वेटिकन के वैदिक पीठाधीश) का चलाया हुआ, Saturnalia यानि सूर्य के मकर राशी में प्रवेश का, Satanic यानि शैतानी, idolatrous यानि मूर्तिपूजा प्रणाली का तथा आलस्य को प्रोत्साहन देने वाला पर्व है।
Iehova’s witness नाम का एक ईसाई संघटन है। उसके दिसम्बर २२, १९८१ के अवेक नाम के साप्ताहिक में लिखा गया कि “सारे ज्ञानकोश तथा अन्य सन्दर्भ ग्रन्थ इस बात की पुष्टि करते हैं कि जीजस की जन्मतिथि अज्ञात है। ईसाई धर्म ने २५ दिसम्बर तारीख और उस दिन से संलग्न सारे उत्सव और प्रथाएँ रोमन लोगों से अपना ली।” ब्रिटिश ज्ञानकोष का कथन है कि “ईसाई धर्मविधियों में अनेक ईसा पूर्व की हैं; विशेषकर क्रिसमस। उस त्यौहार द्वारा सूर्य का मकर राशी में प्रवेश तथा नए सूर्य (मित्र) के जन्म पर मिष्ठान्न भोजन और आनंदोत्सव मनाए जाते थे।”
Encyclopaedia Americana ने लिखा है कि “उस दिन पहले से उत्तरायण उत्सव भगवानधर्मी (Pagan) लोग मनाते थे।” The New Catholic Encyclopaedia भी कहता है कि क्रिसमस उत्तरायण का उत्सव था। Preface of Oriental Religious ग्रन्थ में लेखक लिखते हैं कि, “इसमें कोई संदेह नहीं कि ईसाईपंथ के कुछ विधि और त्यौहार मूर्तिपूजकों की प्रणाली का अनुकरण करते हैं। चौथी शताब्दी में क्रिसमस का त्यौहार २५ दिसम्बर को इसलिए माना गया की इस दिन प्राचीन परम्परानुसार सूर्यजन्म का उत्सव होता था। पूर्ववर्ती देशों में और विशेषतः उनकी प्राचीन धर्म-प्रणाली में हमें उनके व्यवसाय और सम्पत्ति, तांत्रिक क्षमता, कला, बुद्धि और विज्ञान का परिचय प्राप्त होता है।”
The Celtic Druids के लेखक गोडफ्रे हिग्गिंस लिखते हैं, “पहाड़ियों पर आग जलाकर २५ दिसम्बर का त्यौहार ब्रिटेन और आयरलैंड में मनाया जाता था। फ़्रांस में ड्रुइडस की परम्परा वैसी ही सर्वव्यापी थी जैसे ब्रिटेन में। हरियाली और विशेषतया Mistletoe (यानि सोमलता) उस त्यौहार में घर घर में लगायी जाती थी। लन्दन नगर में भी लगायी जाती थी। इससे यह ड्रुईडो का त्यौहार होने का पता चलता है। ईसाई परम्परा से उसका (क्रिसमस का) कोई सम्बन्ध नहीं है।” (पेज १६१,) आगे लिखते हैं, “इशानी (Esseni) पंथ के साधू ईसाई बनाए जाने के बाद पतित और पापी रोमन और ग्रीक साधू कहलाने लगे। उनके ईसाई बनने से पूर्व के मठों में एक विशेष दिन सूर्यपूजा होता था। सूर्य को ईश्वर कहते थे। वह दिन था २५ दिसम्बर, मानो सूर्य का वह जन्मदिन था। ड्रुइड लोग भी इसे मनाते थे। भारत से लेकर पश्चिम के सारे देशों तक सूर्य के उस उत्तर संक्रमण का दिन जो मनाया जाता था उसी को उठाकर ईसाईयों ने अपना क्रिसमस त्यौहार घोषित कर दिया।” (पेज १६४)
दिसम्बर संस्कृत शब्द दशम्बर है जिसका मतलब है दसवां महिना। पहले दिसम्बर दसवां महिना ही होता था और नवम्बर (नवअम्बर) नौवां, ऑक्टोबर (अष्टअम्बर) आठवां, सेप्टेम्बर (सप्तअम्बर) सातवाँ आदि क्योंकि पहले भारतीय नववर्ष (विक्रम संवत) के अनुसार ही यूरोप में भी महीनों की गिनती उपर्युक्त तरीके से होती थी जो मार्च-अप्रैल से प्रारम्भ होता है। जनवरी से नववर्ष की शुरुआत बहुत बाद में हुई। इसका एक प्रमाण और देखिए. रोमन में X का मतलब होता है १०. इसलिए X’mas का मतलब भी होता है दसवां महीना अर्थात दिसम्बर।
लेखक स्पेंसर लुईस ने अपने ग्रन्थ The mystical Life of jesus के पृष्ठ १५६ पर लिखा है कि “क्रिस्तस नाम या उपाधि पूर्ववर्ती देशों के अनेक गूढ़ पंथों में देवावतार की द्योतक थी। क्रिस्तस यह मूलतः ईजिप्त के एक देवता का नाम था। ईजिप्त के लोग जिसे ‘ख’ कहते थे उसे ग्रीक ‘क्ष’ लिखते थे। ग्रीक ‘क्ष’ का उच्चारण ‘क’ भी किया जाता था। इसी कारन ईजिप्त का ‘खरु’ ग्रीक भाषा में ‘कृ’ लिखा जाता था।” यहाँ क्रिस्तस मूलतः कृष्णस शब्द है। ‘ष्ण’ का उच्चारण ही ष्ट या स्त था। ऐसा उच्चारण भारत के कई प्रदेशों में भी होता है। अतः स्पष्ट है कि कृष्ण ही कृष्ट, कृष्त, ख्रीष्ट है और कृष्णनीति ही कृष्टनीति, क्रिस्तनीति, ख्रीष्टनीति या क्रिश्चियनीति है। संस्कृत ईशष कृष्ण का ग्रीक/रोमन उच्चारण ही जीसस कृष्ट या जीसस क्राईस्ट है। जीसस नाम का कोई व्यक्ति कभी पैदा ही नहीं हुआ था। ईश्वर का संस्कृत शब्द ईशष बाइबिल में Jesus, यहूदी में जबतक ‘c’ का उच्चारण ‘स’ होता रहा तब तक issac का उच्चारण ईशष; ‘c’ का उच्चारण ‘क’ होने पर आयझेक हो गया. उसी तरह इस्लाम का इशाक (issac) भी ईशष ही है।
इस प्रकार विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों से पता चलता है कि चौथी शताब्दी में प्रारम्भ और रोमन सम्राट और वेटिकन चर्च द्वारा जबरन थोपा गया ईसायत से न क्रिसमस का कोई सम्बन्ध है और न ही ईसा मसीह का। उसी तरह जीसस कृष्ट या जीजस क्राईस्ट से भी ईसा मसीह का कोई सम्बन्ध नहीं है। ईसा मसीह एक महान संत, सुधारक और पैगम्बर थे परन्तु आधुनिक राजनितिक और साम्राज्यवादी इसाईयत से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है। आज भी जिन प्राचीन ईसाईयों को ऑर्थोडॉक्स ईसाई कहकर तिरस्कृत किया जाता है वे ईसा मसीह का जन्मदिन ३ जनवरी को ही मनाते हैं जैसे प्रारम्भ में मनाया जाता था।
स्रोत: वैदिक विश्वराष्ट्र का इतिहास, लेखक-पी एन ओक