हिन्दुराज्य की स्थापना करने वाले वीर बाजीराव पेशवा, जिनका नाम लेने में भी खौफ खाते थे मुगल। भारत के इतिहास में कई बड़े बड़े राजाओं और योद्धाओ ने जन्म लिया और अपने शौर्य की धाक जमाई। ऐसे ही योद्धाओ में एक थे मराठो के महान शासक बाजीराव पेशवा प्रथम जिन्होंने मुगलों को हराकर दिल्ली पर अधिकार किया था और एक विशाल हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की थी।
भारत में हिन्दूराज्य की स्थापना करके मुगल साम्राज्य को ध्वस्त करने वाले बाजीराव पेशवा (bajirao peshwa) का पूरा नाम श्रीमंत बाजीराव बल्लाळ (बाळाजी) भट था। शिवाजी महाराज के निधन के पश्चात मराठो में चितपावन ब्राह्मण वंश के पेशवाओ का प्रभाव बढ़ा और उन्होंने सत्ता संभाली। ऐसे ही एक योग्य शासक बालाजी विश्वनाथ के यहाँ बाजीराव पेशवा का जन्म 18 अगस्त 1700 ई. को हुआ था जो अपने पिता के सबसे बड़े पुत्र थे। इससे पहले भी कई पेशवाओ ने शासन किया और उनके बाद भी कई पेशवा राज्य करते रहे पर सबसे अधिक प्रसिद्ध बाजीराव पेशवा रहे थे जिन्होंने अपने पराक्रम से न केवल मुगलों को हराया बल्कि दिल्ली पर अधिकार करके शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज के स्वप्न को पूर्ण करके समस्त भारत में हिन्दूराज्य की स्थापना की।
बाजीराव पेशवा ने 41 युद्ध लड़े थे जिनमे से एक में भी वह पराजित नहीं हुए थे। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह उनसे इतना खौफ खाता था की वह उनसे प्रत्यक्ष भेंट से भी इनकार कर देता था। बाजीराव का सबसे मुख्य अभियान भोपाल का युद्ध था जिसमे उन्होंने दक्कन के नवाब उल मुल्क को पुन: हराया और उसे 50 लाख रूपये युद्ध के हर्जाने के रूप में चुकाने को कहे। बाजीराव का एक और मुख्य अभियान था पुर्तगालियो को पराजित करना जिसके बाद कोंकण क्षेत्र से पुर्तगालियो का अधिकार समाप्त हो गया और उन्होंने 7000 रूपये वार्षिक हर्जाने के रुप में मराठाओ को देना स्वीकार किया।
मुगल साम्राज्य को ध्वस्त करने वाले बाजीराव पेशवा :
बाजीराव पेशवा की पहली विजय थी दक्कन पर जहाँ के नवाब निजाम उल मुल्क को 1722 में हराकर उन्होंने दक्कन को विदेशी दासता से मुक्त करवा लिया। लेकिन निजाम उल मुल्क इसका बदला लेने के लिए मुगलों से सहायता लेकर मराठो के क्षेत्रो में उत्पात करने लगा। 1728 मार्च में पालखेड में निजाम को दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा और उसने मराठो ओ चौथ देना स्वीकार किया। इसके बाद बाजीराव पेशवा ने मालवा को जीता और बुंदेलखंड में मुहम्मद खान बंगश को हराया।
1930 में गुजरात को जीतने के बाद बाजीराव पेशवा ने दिल्ली की ओर कूच किया। युद्ध व् रणनीति में कुशल बाजीराव पेशवा ने एक विशाल सेना के साथ दिल्ली पर धावा बोल दिया। बाजीराव ने सेना को दो टुकडियो में बाँट कर एक टुकड़ी को आगे दिल्ली भेज दिया। मल्हारराव होलकर दिल्ली में घुसने के बाद वापिस लौट गए जिससे मुगलों को लगा की मराठे वापिस जा चुके है। जश्न मना रहे मुगलों पर बाजीराव ने अचानक धावा बोल दिया जिससे मुग़ल सेना में भगदड़ मच गयी। मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह डर के मारे लाल किले में छुप गया। 31 मार्च 1737 को दिल्ली पर मराठो का अधिकार हो गया और मुगलों को केवल लाल किले तक सिमित कर देने दिया गया। बाजीराव ने अपने विश्वस्त पात्र सरदारों को दिल्ली का शासन संभालने के लिए दे दिया और वापिस पुणे लौट आये।
भारत में कैसे किया एकछत्र राज्य :
दिल्ली के बिरला मंदिर में लगा यह स्तम्भ बाजीराव पेशवा की शौर्य गाथा का वर्णन करता है जिन्होंने न केवल सभी विदेशी आक्रमणकारियों को हराया अपितु देश में एकछत्र हिन्दूराज्य की स्थापना करके देश के नागरिको को उनके अत्याचारों से मुक्ति दी और एक सशक्त भारत का निर्माण किया जो 1830 तक देश में बना रहा। बाजीराव ने सभी विदेशी तुर्क मुग़ल पठानों को हराकर देश में एकछत्र राज्य किया और हिन्दू राज्य की स्थापना की। बाजीराव ने निजाम उल मुल्क, खान ए दुर्रान, मुहम्मद खान जैसे बड़े बड़े बादशाहों को हराया। कई महान इतिहासकार उनकी तुलना नेपोलियन से करते है
बाजीराव ने मथुरा, बनारस तक के हिन्दुओ के लिए पवित्र इस सम्पूर्ण क्षेत्र को विदेशी मुसलमानों व् मुगलों से मुक्त करवा लिया। बाजीराव ने राजपूतो से भी अपने अच्छे सम्बन्ध बनाए रखे और उनके राज्य में कभी अतिक्रमण नहीं किया। पश्चिम में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि पुर्तगालियो को हराना था जिसके बाद उन्होंने पुर्तगालियो से वसई किला भी छीन लिया और वहां पुर्तगालियो के अत्याचारों से त्रस्त जनता को भूमि व् धन दिया।
बाजीराव पेशवा और मस्तानी की प्रेम कहानी :
कहने को देश में ताजमहल को प्यार की निशानी बताया जाता है पर उससे भी बड़ी प्रेम कहानी है बाजीराव पेशवा और मस्तानी की। मस्तानी मूलरूप से अफगानी थी जो अपने समय की अद्वितीय सुंदरी व् एक नर्तकी थी। 1724 में जब मराठा सरदार चिमाजी अप्पा ने शुजात खान को हराया तो वही उन्हें मस्तानी मिली जिसे उन्होंने बाजीराव पेशवा के पास पहुंचा दिया। उसके उपरांत से ही दोनों में प्रेम बढ़ा और दोनों एक दुसरे के हो गए।
मस्तानी ने बाजीराव के हृदय में अपने लिए एक विशेष स्थान बना लिया। उसने अपने जीवन में हिन्दू स्त्रियों के रीती रिवाज और परम्पराओ को भी अपना लिया जिससे उसका नाम मस्तानी बाजीराव के रूप में प्रसिद्ध हो गया। 28 अप्रैल 1740 में बाजीराव पेशवा को बिमारी के कारण निधन हो गया जिससे मस्तानी को गहरा आघात लगा। मस्तानी बाजीराव की मृत्यु से इतनी दुखी हो गयी की उन्होंने खाना पीना तक छोड़ दिया और कुछ ही दिनों में उनका भी देहांत हो गया। पुणे के पाबल गाँव में बना मस्तानी का मकबरा आज भी उनके प्रेम और त्याग की याद दिलाता है।